हनुमान जयन्ती

हनुमान जयन्ती

हनुमज्जयंती की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। उत्सवसिन्धु, व्रतरत्नाकर और वाल्मीकी रामायण के आधार पर यह कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को होती है। दूसरी ओर, कुछ विद्वान इसे चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मानते हैं। लोक परंपरा में भी चैत्र शुक्ल पूर्णिमा अधिक मान्य है। ऐसे में किसी एक तिथि को निश्चित करना कठिन है। लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार तिथि तय कर सकते हैं। चूंकि हनुमान जी का जन्म रात्रि में माना गया है, इसलिए यह तिथि सायंकाल व्यापिनी मानी जानी चाहिए।

हनुमान जी के जन्म से संबंधित एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया था। यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें तीन पिंड मिले, जिन्हें उन्होंने अपनी तीन रानियों को खाने के लिए दिया।

हालांकि, एक रानी ने पिंड को लापरवाही से कहीं रख दिया। वह पिंड एक चील उठा ले गई और उसे एक स्थान पर गिरा दिया, जहाँ अंजना देवी (हनुमान जी की माता) मौजूद थीं। अंजना देवी ने वह पिंड खा लिया। इसी के प्रभाव से हनुमान जी का जन्म हुआ।

वाल्मीकी रामायण में वर्णन है कि हनुमान जी जन्म लेते ही सूर्य को पकड़ने के लिए आकाश में कूद पड़े:

यमेव दिवसं ह्येष ग्रहीतुं भास्करं प्लुतः।
तमेव दिवसं राहुर्जिघृक्षति दिवाकरम्॥

इस श्लोक में बताया गया है कि जिस दिन हनुमान जी ने सूर्य को पकड़ने के लिए छलांग लगाई, उसी दिन राहु सूर्य को ग्रहण करने का प्रयास कर रहा था। इससे स्पष्ट होता है कि हनुमान जी के जन्म के अगले दिन अमावस्या रही होगी, क्योंकि सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन ही होता है।

हनुमज्जयंती के दिन व्रत, उपवास और पञ्चामृत स्नान का पालन करना चाहिए। इस अवसर पर शृंगार में तेल और सिन्दूर का उपयोग आवश्यक है। नैवेद्य में चना (भीगा या भुना), गुड़, बेसन के लड्डू या बूँदी (मोतीचूर) के लड्डू अवश्य शामिल होने चाहिए।

हनुमान जी बल के प्रतीक माने जाते हैं और मल्लविद्या के साधकों के इष्टदेव हैं। इसलिए इस दिन व्यायाम प्रदर्शन की परंपरा भी महत्वपूर्ण है। शृंगार में तेल और सिन्दूर का उपयोग हनुमान जी के स्वरूप का प्रतीक है। नैवेद्य में चना, गुड़ और बेसन से बने पदार्थों का उपयोग विशेष है क्योंकि ये हनुमान जी और वानर जाति के प्रिय माने जाते हैं।

मथुरा-वृन्दावन में आज भी वानरों को चना और गुड़ दिया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार:
चना शीतल, रूखा, रक्तपित्त और कफ को दूर करने वाला, हल्का और मल को रोकने वाला है। भीगा हुआ या हरा चना कोमल, रुचिकर, और पथ्य होता है।
गुड़ शक्ति देने वाला, भारी, चिकना और वायु को शांत करने वाला होता है।

चना वायु उत्पन्न करता है जबकि गुड़ वायु को संतुलित करता है। इनके संयुक्त उपयोग से दोष समाप्त होते हैं और गुणों में वृद्धि होती है। इसलिए हनुमान जी के नैवेद्य में चना और गुड़ को प्रमुखता दी जाती है। बेसन और बूँदी के लड्डू भी समान गुण रखते हैं, जिससे उनका उपयोग भी उचित है।

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