संत वाणी - १२

संत वाणी - १२

  1. पूजा के आठ श्रेष्ठ पुष्प हैं: अहिंसा पहला, इन्द्रिय-संयम दूसरा, जीवों पर दया करना तीसरा, क्षमा चौथा, शम पाँचवाँ, दम छठा, प्रेम सातवाँ और सत्य आठवाँ पुष्प है। इन पुष्पों से भगवान प्रसन्न होते हैं। अन्य पुष्प पूजा के बाहरी साधन मात्र हैं। भगवान् केवल इन आठ पुष्पों द्वारा की गई पूजा से प्रसन्न होते हैं, क्योंकि वे भक्ति और प्रेम के प्रिय हैं।
  2. जितने से पेट भर सके, उतने तक ही जीवों का अधिकार है। जो उससे अधिक संग्रह करता है, वह चोर कहलाता है और दंड का पात्र बनता है।
  3. एक ज्ञान ज्ञान; बहुत ज्ञान अज्ञान !
  4. पतंग एक बार प्रकाश देख ले तो फिर अंधकार में नहीं जाता। चींटियाँ गुड़ में अपने प्राण दे देती हैं, लेकिन वहाँ से वापस नहीं आतीं। इसी तरह, भक्त जब एक बार प्रभु के दर्शन का आनंद ले लेते हैं, तो उसी में लीन हो जाते हैं और फिर पीछे नहीं मुड़ते।
  5. संसारमें रहकर जो साधन कर सकते हैं, यथार्थ में वे ही वीर पुरुष हैं ।
Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...