मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं यो न जानाति साधकः । शतलक्षप्रजप्तोऽपि तस्य मन्त्रो न सिध्यति - जो व्यक्ति मंत्र का अर्थ और सार नहीं जानता, वह इसे एक अरब बार जपने पर भी सफल नहीं होगा। मंत्र के अर्थ को समझना महत्वपूर्ण है। मंत्र के सार को जानना आवश्यक है। इस ज्ञान के बिना, केवल जप करने से कुछ नहीं होगा। बार-बार जपने पर भी परिणाम नहीं मिलेंगे। सफलता के लिए समझ और जागरूकता आवश्यक है।
नैमिषारण्य की ८४ कोसीय परिक्रमा है । यह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शुरू होकर अगले पन्द्रह दिनों तक चलती है ।
कौन देवता ज्यादा महान?
कौन देवता सबसे महान? स्वामी विवेकानंद की इस कहानी में छुप�....
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मन का मत सुनो । बुद्धि का सुनो । कहती है गीता ।....
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