संत वाणी - १३

संत वाणी - १३

  • प्रेमिका माता-पिता तथा परिवारवालों के साथ रहकरसंसार के सभी कार्य करती है, परन्तु उसका मन सदा अपने प्रेमी में लगा रहता है । हे संसारी जीव, तुम भी मन को ईश्वर में लगाकर माता-पिता तथा परिवार का काम करते रहो ।
  • यदि मन को स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, तो वह अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प करता है। लेकिन जब उसे विचारों के नियंत्रण में रखा जाए, तो वह स्थिर और शांत हो जाता है।
  • डुबकी लगाते ही जाओ, रत्न अवश्य मिलेगा । धैर्यपूर्वक साधना करते रहो, समय आने पर ईश्वर की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।
  • साधक का सबसे बड़ा सहारा बालक की तरह रोना है।
  • मनुष्य धर्म के बारे में तर्क-वितर्क तब तक करता है, जब तक उसे भक्ति का नुभव नहीं होता। अनुभव होने पर वह शांत होकर साधना में लग जाता है।
Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...