पद्म पुराण में दान को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है। भूख से पीड़ित व्यक्ति को अन्न देना पुण्य का कार्य है। ऐसा कहा गया है कि जो जरूरतमंदों को भोजन देता है, वह सदा सुख और सौभाग्य का अनुभव करता है।
दान का महत्व इस बात पर निर्भर नहीं करता कि दाता के पास कितनी संपत्ति है। एक साधनहीन व्यक्ति भी दान कर सकता है। वह पानी देकर, किसी को आसरा देकर, या शारीरिक सहायता देकर भी पुण्य अर्जित कर सकता है। अतिथि को स्वागत वचन कहना, आराम के लिए स्थान देना, या शीतल छाया में बैठने का अवसर देना भी दान का रूप है।
प्रतिदिन अपने साधन के अनुसार कुछ-न-कुछ दान अवश्य करना चाहिए। दान केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं है, यह एक भावना है। सहानुभूति और मधुर वचन भी दान के रूप में गिने जाते हैं। इन छोटे-छोटे दानों से न केवल दाता बल्कि ग्रहण करने वाला भी आनंद का अनुभव करता है।
पद्म पुराण के अनुसार, दान करने वाला व्यक्ति इस लोक में सुख और परलोक में शांति प्राप्त करता है। यह न केवल एक कर्तव्य है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने का साधन भी है।
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