( १ ) सतगुरु गोरख भाखे बानी, देव पितर हम देवत पानी । सत गवाही सूरज करे, पूनम चन्दा मावस सरे । पितर हो शुकर मनावें, गंगा मैया सुरग पठावें । कौन कौनसे पितर सुरग गए परसन्न भए, बाल बिरमचारी निपुतरी नाग पितर गिरस्त ब्याए ढयाए । रंडुआ मडुआ छोटे बड़े खोटे खरे, ऊँचे नीचे आगले पीछले पितर परसन्न भए । बिरामन छतरी परसन्न भए । वनिक चण्डाल परसन्न भए । सबन को सुरग पठावे, लोना जोगन विमान चढ़ावे । जाओ जाओ पितरदेव सुरग सुख भोगो, हमे न सताओ जो सताओ तो हनुमान का घोटा खाओ। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, मंत्र सांचा पिण्ड कांचा फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।
पितृपक्ष में चांदी के सर्प को चौकी पर रेशमी कपडे के ऊपर स्थापित करें । सफेद कपडे पहनकर ही पूजा करें । सर्प की प्रतिमा का दूध, दही, शुद्ध जल और गंगा जल से अभिषेक करें । सफेद फूल चढ़ायें । धूप और दीप देकर खीर चढ़ायें । जल से तर्पण करें । इस मंत्र का १०८ बार जाप करें ।
(२) पितर परम पर्वता विराजे, हम कर जोड़े खडे सकारे । होम धूप की होय अग्यारी, पितर देव दरबार तुम्हारी । पितर मनावे हरद्वार में बरकत बरषे, बार-बार मैं फलां मनुज के पितर मनाऊं । सातों सातहि सिर ही झुकाऊं, जो न माने मेरी बात, नरसिंह को झुकाऊं माथ । वीर नरसिंह दहाडता आवे, मूंछे पूंछ कोप हिलावे, हन हन हुम करे हुंकार, प्रेत पितर पीड़ा फटकार । कोड़ा मारे श्री हनुमान, सिद्ध होय सब पूरन काज । दुहाई - दुहाई राजा रामचन्दर महाराज की ।
अमावास्या के दिन नृसिंह और हनुमान जी का पूजन करके पीली मिढाई चढ़ायें । एकान्त स्थान में बैठकर मंत्र को सिद्ध करने के बाद ही इसका प्रयोग करें । प्रेत बाधा या पितर दोष से ग्रस्त घर में अमावास्या की आधी रात को चौकी पर रेशम का कपडा बिछाकर पितरों की प्रतिमायें स्थापित करें । पुरुष-रूपी, स्त्री-रूपी और अर्ध नारी-अर्ध पुरुष के रूप में चांदी की एक एक प्रतिमा होनी चाहिए । उनकी पूजा कर उन्हे लापसी, पूरी, चावल के पिण्ड, और उड़द का बाकाला चढ़ायें । यजमान और पत्नी प्रतिमा सहित चौकी को उठाकर घर की सीमा का परिक्रमा करें । मंत्र को जपता रहें । मांत्रिक उनके पीछे पीछे मंत्र को जपते हुए जमीन पर जल छोडता हुआ चलें । चौकी को पूजा के स्थान पर वापस लाकर उसके सामने नारियल फोडें । चौकी पर रखी हुई सारी सामग्री को घडे के खप्पर में भरकर घर के मुख्य दरवाज़े पर लाकर सात बार ऊपर उठायें । सामग्री सहित खप्पर को कहीं एकान्त स्थान में दफना दें । लौटते समय पीछे मुड़कर न देखें । दूसरे दिन तर्पण, ब्राह्मण भोज, और दान इत्यादि करें । इससे पितर प्रसन्न होकर सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं ।
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