ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा

ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा

वराह पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर ६६ अरब तीर्थ हैं, और चातुर्मास के दौरान ये सभी ब्रज में निवास करते हैं। यही कारण है कि इस समय ब्रज यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ जाती है। हजारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में निवास करते हैं। ब्रजभूमि की यह यात्रा प्राचीन काल से होती आ रही है। चालीस दिनों में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख  पुराण, और अन्य ग्रंथों में मिलता है।

कृष्ण की बाल लीलाओं के अलावा, सतयुग में भक्त ध्रुव ने यहां नारद जी से गुरु मंत्र लेकर तपस्या की और ब्रज की परिक्रमा की। त्रेता युग में शत्रुघ्न ने लवणासुर का वध कर ब्रज की परिक्रमा की। यात्रा के मार्ग में गली बारी का शत्रुघ्न मंदिर विशेष महत्व रखता है। द्वापर युग में उद्धव ने गोपियों के साथ ब्रज की परिक्रमा की।

कलियुग में भी ब्रज यात्रा का विशेष महत्व बना रहा। जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप और अन्य स्थल इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं। १४वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी ने ब्रज यात्रा की थी। १५वीं शताब्दी में माध्व संप्रदाय के मघवेंद्र पुरी महाराज और १६वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने ब्रज यात्रा का अनुभव किया था।

परिक्रमा मार्ग 

इस यात्रा में मथुरा की अंतरग्रही परिक्रमा भी शामिल है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले निम्न स्थानों पर पहुँचती है। 

भक्त ध्रुव तपोस्थली, मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यवन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, चरन पहाड़ी कुण्ड, बरसाना, नंदगाँव, जावट, कोकिला वन, कोसी, शेरगढ़, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, लोहवन, और वृन्दावन के मार्ग के अनेक पौराणिक स्थल।

दर्शनीय स्थल 

बारह ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में १२ वन २४ उपवन ४ कुंज ४ निकुंज ४ वनखंडी ४ ओखर ४ पोखर ३६५ कुण्ड ४ सरोवर १० कूप ४ बावरी ४ तट ४ वट वृक्ष ५ हाड़ ४ झूला  और ३३ स्थल रासलीला के  हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फ़रीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा मथुरा में है।

व्रज मंडल परिक्रमा के नियम

परिक्रमा करते समय  कुछ नियमों का पालन करना चाहिए।

इनका पालन करें 

  • सत्य बोलना।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना।
  • भूमि पर सोना।
  • दूसरों के अपराधों को क्षमा करना।
  • पवित्र नदियों या तालाबों में स्नान करना।
  • आचमन करना।
  • केवल भगवान को अर्पित प्रसाद ग्रहण करना।
  • तुलसी की माला पर हरिनाम-जप करना या वैष्णवों की संगति में हरिनाम-संकीर्तन करना।
  • परिक्रमा के दौरान ब्राह्मणों, देवताओं, तीर्थ स्थलों और भगवान की लीलास्थलों का सम्मान और पूजा करना।

इनसे बचें 

  • क्रोध करना।
  • परिक्रमा मार्ग में वृक्षों, लताओं, छोटे पौधों, गायों आदि पर हिंसा करना।
  • ब्राह्मणों, वैष्णवों आदि का अनादर करना।
  • देवताओं का अपमान करना।
  • साबुन और तेल का उपयोग करना।
  • दाढ़ी या सिर मुंडवाना।
  • चींटियों और अन्य जीवों को मारना।
  • विवादों में उलझना।
  • दूसरों की निंदा करना।

इन नियमों का पालन करते हुए परिक्रमा करना शुभ माना गया है।

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