माया को एक सार्वभौमिक भ्रम के रूप में वर्णित किया गया है, जो शाश्वत सत्य के वास्तविक स्वरूप को छुपाता है। यह वह शक्ति है जो प्राणियों को जन्म, मृत्यु और दुख के चक्र से जोड़ती है, जिससे आसक्ति और झूठे अहंकार की भावना उत्पन्न होती है। माया केवल स्पष्ट छलावा नहीं है; यह एक सूक्ष्म भ्रम है, जो हमें नश्वर वस्तुओं से जुड़ने पर विवश करता है और शाश्वत सत्य से दूर रखता है। यह एक अलग अहंकार की भावना उत्पन्न करती है, जिससे भय, इच्छा और कष्ट जन्म लेते हैं। मोक्ष का अर्थ इस भ्रम को भेदकर अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना है।
अतिथि को भोजन कराने के बाद ही गृहस्थ को भोजन करना चाहिए। अघं स केवलं भुङ्क्ते यः पचत्यात्मकारणात् - जो अपने लिए ही भोजन बनाता है व्ह केवल पाप का ही भक्षण कर रहा है।
घर में पूजा कैसे करें
१. आचमन - इन तीन मन्त्रों से पृथक्-पृथक् हाथ में जल लेकर मन्....
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