गणपति शब्द का अर्थ

महादेव कहते हैं - त्रिपुर दहन के समय:
'शैवैस्त्वदीयैरुत वैष्णवैश्च शाक्तैश्च सौरेरपि सर्वकार्ये शुभाशुभे लौकिक वैदिके च त्वमर्चनीयः प्रथमं प्रयत्नात्।'

महादेव गणेशजी से कहते हैं - आपके ही भक्त, वैष्णव, शैव, शाक्त, सूर्य के भक्त, सभी द्वारा हर कार्य के प्रारम्भ में आपका पूजन होगा, चाहे कार्य लौकिक हो या दिव्य।

यः स्मृत्वा मां त्यजति प्राणमन्ते श्रद्धयान्वितः स यात्यपुनरावृत्तिं प्रसादान्मम भूभुज।
गणेशजी कहते हैं, जो भी शरीर छोड़ते समय मेरा स्मरण करेगा, उसका पुनर्जन्म नहीं होगा - अर्थात, उस प्रवास में भी उनका स्मरण करने से परिणाम मंगलमय ही होगा।

नमस्ते गणपतये:
गणपति का अर्थ है गण के पति, स्वामी। गण का अर्थ है समूह, वर्ग, समुदाय। नेता या पति हमेशा गण का होता है। गणेशजी कैसे गण के पति हैं?
'देवादिगणानां महत्तत्वादि तत्वगणनां निर्गुणसगुणब्रह्मगणानां च पतिः'

देवादिगण - वैदिक देवताओं के गणों में बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र जैसे गण हैं।
इन सबके पति गणेशजी हैं।
और भी कई गण हैं जिन्हें देवयोनि कहते हैं - विद्याधर, अप्सरा, यक्ष, रक्षो, गन्धर्व, किन्नर, पिशाच, गुह्यक, सिद्ध और भूत।
सांख्यशास्त्र के अनुसार महत्, अहंकार, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध तन्मात्रा जैसे तत्व हैं, जिनसे सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि हुई है।
ये तत्व समझ लो वे ईंट-पत्थर हैं, जिनसे विधाता ने विश्व की रचना की।
पाँच ज्ञानेंद्रियाँ - कान, त्वचा, आँखें, जीभ और नाक, पाँच कर्मेंद्रियाँ - मुँह, हाथ, पैर, मलोत्सर्ग और जननेंद्रिय, और पंचभूत - आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, इन सबके भी गणपति गणेशजी हैं।

जितनी भी दैवी शक्तियाँ हैं - सगुण या निर्गुण, उन सबके भी पति गणेशजी ही हैं।
भोलेनाथ महादेव के भूतगण के भी वही स्वामी हैं।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार देवगण, राक्षस गण और मनुष्यगण - इन सबके भी पति गणेशजी हैं।

२७ हाथी, २७ रथ, ८१ घोड़े और १३५ पैदल सैनिक - इस गण को सेना कहते हैं।
विश्व में जितनी भी सेनाएँ हैं, उन सबके भी गणपति गणेशजी ही हैं।
छन्दशास्त्र में ८ गण होते हैं - मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण, और तगण।
मंत्र, श्लोक, और कविताएँ सब छन्द के अनुसार बनते हैं; इन गणों के भी गणपति गणेशजी ही हैं।
अक्षरों के वर्ग, समूह - जैसे स्वर, व्यंजन, कवर्ग, चवर्ग - इन सबके भी पति गणेशजी हैं।

विश्व में आपको कोई भी चीज़ एकल रूप में नहीं दिखेगी।
पर्वत, समुद्र, उद्यान, पशु, पक्षी, मनुष्य - सब कुछ बहुसंख्या में होते हैं, समूह में होते हैं, गण में होते हैं।
इन सबके स्वामी, यानी सारे जगत के स्वामी, यही हैं गणपति।
इन सब गणों के ईश - गणेश।

जो अन्दर है और जो बाहर है - इनका योग हो जाए, ये एक हो जाएँ, ये एक-दूसरे से अभिन्न हो जाएँ, यही योगी चाहते हैं।
अंदर और बाहर को एकत्र करने का प्रयास, इन्हें एक गण बनाने का प्रयास, गणेशजी योगियों के भी पति हैं।

सामवेद में एक रहस्य बताया है - गणपति शब्द में जो 'ग' है, वह समस्त जगत की सृष्टि को दर्शाता है।
'ण' सृष्टि का संहार को दर्शाता है।
गणपति नाम सृष्टि और संहार दोनों का द्योतक है।

गणेशपुराण में गणेशगीता का वर्णन है; जैसे महाभारत में भगवद्गीता है, वैसे ही गणेशगीता गणेशपुराण में है।
गणेशगीता में कहा गया है:
'ॐ गणेशो वै ब्रह्म' - श्री गणेश साक्षात ब्रह्म तत्व हैं।
सच्चिदानन्द स्वरूप ही ब्रह्म हैं, श्री गणेश।
'तद्विद्यात्' - यह जान लो।
'यदिदं किंच सर्वं भूतं भव्यं जायमानं च तत्सर्वमित्याचक्षते' - जो कुछ भी पहले था, अब है, और भविष्य में रहेगा, वह सब श्री गणेश ही हैं।

अस्मान्नातः परं किंचित् - उनके अलावा और कुछ भी नहीं है।
यो वेद स वेद ब्रह्म - जिसने भी इस रहस्य को जान लिया, समझो कि उसने ब्रह्म तत्व को जान लिया।

नमस्ते गणपतये
'नमः ते' - नमस्ते - मैं आपको नमस्कार करता हूँ, प्रणाम करता हूँ।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
'त्वमेव' - 'तुम ही' अर्थात आप ही तत्व हैं।

तत्वमसि वेदान्त शास्त्र का एक महावाक्य है।
वेदान्त शास्त्र में और भी महावाक्य हैं -
'अहं ब्रह्मास्मि',
'प्रज्ञानं ब्रह्म',
'अयं आत्मा ब्रह्म',
'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या',
'एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म',
'सोऽहं',
'सर्वं खल्विदं ब्रह्म'।

 
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