ॐ नमस्ते गणपतये...
सबसे पहले जो ॐकार का उच्चारण होता है, उसे मंगलाचरण कहते हैं।
'मंगलादीनि मंगलमध्यानि मंगलान्तानि च शास्त्राणि प्रथन्ते' — जितने शास्त्र हैं, उनके आदि, मध्य और अन्त में ॐकार रहेगा।
ॐकार इसलिए है कि यह शब्दों में सबसे कल्याणमय और कल्याणकारी शब्द है।
'वेदाद्य ॐकारः सर्वमंगलमयो वेदोक्त नानाकर्मोपासन ज्ञानयोगफलप्राप्तिकारकत्वात्' — किसी भी कार्य की शुरुआत में ॐकार का उच्चारण करने से वह कार्य सफल हो जाता है।
'यो वेदादौ स्वरः प्रोक्तः' — ॐकार के बारे में तैत्तिरीयोपनिषद कहता है।
ॐकार वह शब्द है जिसे वेदों की शुरुआत में बोला जाता है।
'वेदान्ते च प्रतिष्ठितः' — वेदोच्चार को समाप्त करने पर भी ॐकार का उच्चारण होता है।
विश्व के सबसे श्रेष्ठ शब्द हैं वेद, वैदिक वाङ्मय।
उन वेदों की भी शुरुआत में अपनी सान्निध्य से और कल्याणकारी बनने वाला शब्द है ॐकार।
इस मंगलाचरण का उद्देश्य है विघ्न निवारण, ताकि आगे किये जाने वाले अथर्वशीर्ष के पाठ में कोई विघ्न न आए, इसके लिए मंगलाचरण यानी ॐकार का उच्चारण होता है।
गणेशजी स्वयं विघ्नहर्ता हैं, लेकिन उनके अथर्वशीर्ष का पाठ करने से पहले विघ्न निवारण के लिए ॐकार का उच्चारण किया जाता है।
क्योंकि ॐकार का उच्चारण स्वयं गणपति पूजन के समान है।
गणेश पूजन करने के चार तरीके हैं:
तरीका जो भी हो, किसी भी कार्य की सिद्धि और उसमें विजय प्राप्ति के लिए प्रारम्भ में गणेश पूजन अवश्य करना चाहिए।
जब व्यास महर्षि पुराणों की रचना करने लगे, उन्होंने सबसे पहले गणेश पूजन नहीं किया।
पुराणों की शुरुआत गणेशजी की स्तुति से ही करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं किया।
इससे बहुत सारे विघ्न उत्पन्न हो गए। उनकी स्मरण शक्ति कम होने लगी, घटनाओं के क्रम में गड़बड़ी होने लगी — कभी राम की जगह कृष्ण, तो कभी देवताओं की जगह दानव।
उनकी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो गई। उनकी एकाग्रता बिगड़ गई।
वे ब्रह्माजी के पास गए और पूछा, 'यह मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
मैं श्रेष्ठ कार्य करने निकला हूँ। वेदों का सार साधारण लोगों तक पहुँचाकर उन्हें धर्म से विचलित होने से रोकना मेरा उद्देश्य है।
इसके लिए ही पुराणों की रचना कर रहा हूँ। इन पुराणों के द्वारा ही लोगों को नास्तिक बनने से रोका जा सकता है, और जो नास्तिक हैं उन्हें सन्मार्ग में लाया जा सकता है।
लेकिन अब मैं एक मदहोश की तरह बन गया हूँ। मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है। यह क्या हो रहा है मेरे साथ?'
ब्रह्माजी ने एक पल के लिए सोचा और मुस्कुराते हुए कहा, 'हर काम सोच-समझकर ही करना चाहिए, नहीं तो कोई फल नहीं मिलेगा।
युक्तिपूर्वक और प्रतिबद्धता से सही तरीके से किया हुआ काम ही फल देता है। अहंकार और घमंड के साथ किया हुआ काम बिगड़ जाता है।
अपने घमंड के कारण ही गरुड़ को श्री हरि का वाहन बनना पड़ा।
मत्सर बुद्धि के कारण परशुराम द्वारा संपूर्ण क्षत्रिय कुल का नाश हुआ। आप भी इसी रास्ते पर जा रहे हैं, ऐसा लगता है।
हम सब — मैं ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, सूर्य, अग्नि, वरुण — हम सब एक देवता के अधीन हैं। वही एक देवता विघ्नों का निवारण कर सकता है। वह देवता अनादि और अनन्त है। वही जगत का स्रष्टा है और नियंता है।
आपने क्या सोचा, आप बड़े ज्ञानी हैं और विद्वान हैं, इसीलिए मनमानी करेंगे?
किसी भी कार्य की शुरुआत में गणेश पूजन करना चाहिए, नहीं तो उस कार्य का विनाश सुनिश्चित है।
कोई भी नया कार्य शुरू करते समय, नया घर में प्रवेश करते समय या किसी भी मुख्य कार्य के लिए प्रवास करते समय गणेशजी का पूजन करना चाहिए, नहीं तो अनर्थ होता है।
अब आप समझ गए होंगे कि आपके साथ क्या हो रहा है। इसीलिए बिना किसी विलम्ब के उनके शरण में जाइए; इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है।
हजारों सालों की तपस्या कीजिए, कोई फायदा नहीं होगा।
भगवान श्री गणेश, केवल भगवान श्री गणेश ही आपकी इस समस्या को दूर कर सकते हैं।'
ब्रह्माजी ने व्यास महर्षि को गणेशजी के एकाक्षर मंत्र का उपदेश दिया, जिससे उन्होंने उपासना करके भगवान को प्रसन्न किया।
भगवान इतने प्रसन्न हो गए कि वे स्वयं बैठ गए व्यासजी की सहायता करने। भक्तवत्सल हैं श्री गणेश।
मान लो आपको गणेश याग करना है, तब भी उसकी शुरुआत में गणेश पूजन अलग से करना ही है।
क्योंकि गणेश पूजन एक मंगलाचरण है। गणेशजी मंगलमूर्ति हैं।
वह गणेश याग निर्विघ्न समाप्त हो, इसके लिए गणेश पूजन के साथ प्रार्थना की जाती है।
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