सप्त नदी पापनाशन स्तोत्र

 

सर्वतीर्थमयी स्वर्गे सुरासुरविवन्दिता।
पापं हरतु मे गङ्गा पुण्या स्वर्गापवर्गदा।
कलिन्दशैलजा सिद्धिबुद्धिशक्तिप्रदायिनी।
यमुना हरतात् पापं सर्वदा सर्वमङ्गला।
सर्वार्तिनाशिनी नित्यम् आयुरारोग्यवर्धिनी।
गोदावरी च हरतात् पाप्मानं मे शिवप्रदा।
वरप्रदायिनी तीर्थमुख्या सम्पत्प्रवर्धिनी।
सरस्वती च हरतु पापं मे शाश्वती सदा।
पीयूषधारया नित्यम् आर्तिनाशनतत्परा।
नर्मदा हरतात् पापं पुण्यकर्मफलप्रदा।
भुवनत्रयकल्याणकारिणी चित्तरञ्जिनी।
सिन्धुर्हरतु पाप्मानं मम क्षिप्रं शिवाऽऽवहा।
अगस्त्यकुम्भसम्भूता पुराणेषु विवर्णिता।
पापं हरतु कावेरी पुण्यश्लोककरी सदा।
त्रिसन्ध्यं यः पठेद्भक्त्या श्लोकसप्तकमुत्तमम्।
तस्य प्रणश्यते पापं पुण्यं वर्धति सर्वदा।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

94.5K
7.9K

Comments

hmsa4

Other stotras

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |