संत और असंत में प्रमुख भेद बताते हैं श्रीराम जी। जानें कि कैसे संत आत्म-संयम, दूसरों के लिए प्रेम और ईश्वर के प्रति समर्पण का जीवन जीते हैं, जबकि असंत दूसरों को पीडा देने में रत रहते हैं।
श्री रामचरित मानस में संतों और असंतों में भेद के बारे में श्रीराम जी स्वयं बताते हैं।
संत काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर - इन छः दोषों से दूर रहते हैं।
उनकी बुद्धि स्थिर होती है।
वे धैर्यवान होते हैं।
वे पापों से दूर रहते हैं।
उनकी कामनाएं नहीं होती हैं।
वे सर्वत्यागी होते हैं।
बाहर से और अंदर से पवित्र रहते हैं।
संतों का ज्ञान असीम होता है।
वे भोजन कम करते हैं।
सत्य का आचरण करते हैं।
धर्म का आचरण करते हैं।
वे सावधान रहते हैं।
दूसरों का सम्मान करते हैं।
अभिमान रहित रहते हैं।
वे कभी संसार के मामलों को लेकर दुःखी नहीं होते हैं।
उनका किसी भी विषय में कोई संदेह नहीं होता है।
भगवान के चरणों को छोडकर उन्हें किसी भी विषय में दिलचस्पी नहीं होती है।
उनके गुणों के बारे में कोई कहे तो उन्हें अच्छा नहीं लगता।
दूसरों के गुणों के बारे में अच्छे से सुन लेते हैं।
संत सरल और कोमल होते हैं।
सबसे प्रेम की भावना रखते हैं।
न्याय का साथ देते हैं।
जप, तप, दम, संयम, व्रत इत्यादियों में रत रहते हैं।
उनमें श्रद्धा, क्षमा, मैत्री, दया, करुणा, और प्रसन्नता रहती हैं।
वेद पुराणों के यथार्थ ज्ञान के साथ साथ उनमें वैराग्य, विवेक ओर विनय भी रहता है।
वे सबके हित में लगे रहते हैं।
संत का संग मोक्ष दिलाता है।
कामी का संग बन्धन में डाल देता है।
संतों और असंतों की करनी चन्दन और कुल्हाडी जैसी है।
कुल्हाडी चन्दन को काटती है।
तब भी चन्दन उसे बदले में सुगन्ध ही देता है।
इसी कारण से ही चन्दन को देवता भी सिर पर धारण करते हैं।
कुल्हाडी के साथ क्या होता है?
कुल्हाडी को आग में जलाकर बार बार पीटते हैं।
दूसरों को दुखी देखकर संत दुखी हो जाते हैं।
दूसरों का सुख देखकर उन्हें भी सुख मिलता है।
वे किसी को भी अपना शत्रु नहीं मानते हैं।
उनके मन, वचन और कर्म में कपटता नहीं होती है।
वे कभी कठोर वचन नहीं बोलते हैं।
अब असंतों का स्वभाव
असंत दूसरोंं को पीडा देने में लगे रहते हैं।
उनके हृदय में सर्वदा संताप रहता है।
दूसरोंं के ऐश्वर्य और सुख को देखकर वे जलते हैं।
दूसरोंं का पतन देखने से या दूसरों के बारे में निन्दा सुनने से उन्हें सुख मिलता है।
असंत निर्दयी, कुटिल और कपटी होते हैं।
जो उनकी भलाई करते हैं उनके साथ भी वे बुराई ही करते हैं।
लेन-देन में वे झूठ का ही आचरण करते हैं।
मीठा बोलेंगे लेकिन अंदर से कठोर होंगे।
वे भोजन और मैथुन में ही आसक्त रहते हैं।
दूसरों का छोडो असंत अपने परिवार वालों के भी विरोधी होते हैं।
वे अपने माता-पिता का सम्मान नही करते, भाई-बहन से प्यार नहीं करते।
उनको सन्मार्ग दिखानेवाला कोई सद्गुरु नहीं होता।
असंत पराये धन और परायी स्त्री में इच्छा रखते हैं।
सबसे बडा धर्म है दूसरों की भलाई करना।
दूसरों को दुःख देने जैसा कोई पाप नहीं है।
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