शारदां श्वेतवर्णां च शुभ्रवस्त्रसमन्विताम् ।
कमलासनसंयुक्तां वन्देऽहं कविताप्रियाम् ॥

सरस्वत्यै नमस्तुभ्यं वरदे ज्ञानरूपिणि ।
कलानिधिं कवित्वस्य देहि मे शुभदायिनि ॥

सारदे शारदे देवि सुश्वेताब्जासने प्रिये ।
शुभ्रवर्णे सदा त्वां च हृदि मे चिन्तयाम्यहम् ॥

वीणानिनादमधुरे वीणापुस्तकधारिणि ।
कवित्वं देहि मे मातः पतामि तव पादयोः ॥

यदनुग्रहतो ह्येष कवितावारिधिः सदा ।
भवेत्संप्राप्तसिद्धिर्मे तस्यै तुभ्यं नमो नमः ॥

काव्यविद्याप्रकाशार्थं नमामि विधिवल्लभे ।
विद्यां देहि कवीशानि मातरत्यन्तिकां शुभाम् ॥

इति यः स्तौति तां नित्यं सरसां सुकविप्रियाम् ।
कवित्वं समवाप्नोति यशः प्राप्नोति जीवने ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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