वरदाप्यहेतुकरुणाजन्मावनिरपि पयोजभवजाये ।
किं कुरुषेन कृपां मयि वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ॥

किं वा ममास्ति महती पापततिस्तत्प्रभेदने तरसा ।
किं वा न तेऽस्ति शक्तिर्वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ॥

किं जीवः परमशिवाद्भिन्नोऽभिन्नोऽथ भेदश्च ।
औपाधिकः स्वतो वा वद वदवाग्वादिनि स्वाहा ॥

वियदादिकं जगदिदं सर्वं मिथ्याऽथवा सत्यम् ।
मिथ्यात्वधीः कथं स्याद्वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ॥

ज्ञानं कर्म च मिलितं हेतुर्मोक्षेऽथवा ज्ञानम् ।
तज्ज्ञानं केन भवेद्वद वदवाग्वादिनि स्वाहा ॥

ज्ञानं विचारसाध्यं किं वा योगेन कर्मसाहस्रैः ।
कीदृक्सोऽपि विचारो वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

प्रणाम गुरूजी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -प्रभास

आप जो अच्छा काम कर रहे हैं उसे जानकर बहुत खुशी हुई -राजेश कुमार अग्रवाल

वेदधारा के धर्मार्थ कार्यों में समर्थन देने पर बहुत गर्व है 🙏🙏🙏 -रघुवीर यादव

वेदधारा का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा है। मेरे जीवन में सकारात्मकता के लिए दिल से धन्यवाद। 🙏🏻 -Anjana Vardhan

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