विशुद्धदेहो महदम्बरार्चितः
किरीटभूषा- मणुमण्डनप्रियः।
महाजनो गोसमुदायरक्षको
विभातु चित्ते मम वेङ्कटेश्वरः।
उदारचित्तः परमेशकीर्तितो
दशास्यहन्ता भगवांश्चतुर्भुजः।
मुनीन्द्रपूज्यो धृतविक्रमः सदा
विभातु चित्ते मम वेङ्कटेश्वरः।
सनातनो नित्यकृपाकरोऽमरः
कवीन्द्रशक्ते- रभिजातशोभनः।
बलिप्रमर्दस्त्रिपदश्च वामनो
विभातु चित्ते मम वेङ्कटेश्वरः।
सुरेश्वरो यज्ञविभावनो वरो
वियच्चरो वेदवपुर्द्विलोचनः।
परात्परः सर्वकलाधुरन्धरो
विभातु चित्ते मम वेङ्कटेश्वरः।
स्वयंभुवः शेषमहीध्रमन्दिरः
सुसेव्यपादाङ्घ्रियुगो रमापतिः।
हरिर्जगन्नायक- वेदवित्तमो
विभातु चित्ते मम वेङ्कटेश्वरः।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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