वृतसकलमुनीन्द्रं चारुहासं सुरेशं
वरजलनिधिसंस्थं शास्त्रवादीषु रम्यम्।
सकलविबुधवन्द्यं वेदवेदाङ्गवेद्यं
त्रिभुवनपुरराजं दक्षिणामूर्तिमीडे।
विदितनिखिलतत्त्वं देवदेवं विशालं
विजितसकलविश्वं चाक्षमालासुहस्तम्।
प्रणवपरविधानं ज्ञानमुद्रां दधानं
त्रिभुवनपुरराजं दक्षिणामूर्तिमीडे।
विकसितमतिदानं मुक्तिदानं प्रधानं
सुरनिकरवदन्यं कामितार्थप्रदं तम्।
मृतिजयममरादिं सर्वभूषाविभूषं
त्रिभुवनपुरराजं दक्षिणामूर्तिमीडे।
विगतगुणजरागं स्निग्धपादाम्बुजं तं
त्निनयनमुरमेकं सुन्दराऽऽरामरूपम्।
रविहिमरुचिनेत्रं सर्वविद्यानिधीशं
त्रिभुवनपुरराजं दक्षिणामूर्तिमीडे।
प्रभुमवनतधीरं ज्ञानगम्यं नृपालं
सहजगुणवितानं शुद्धचित्तं शिवांशम्।
भुजगगलविभूषं भूतनाथं भवाख्यं
त्रिभुवनपुरराजं दक्षिणामूर्तिमीडे।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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