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शिवार्चा में निषिद्ध पत्र-पुष्प

कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, बसंत ऋतुमें खिलनेवाला कंद-विशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, सर्ज और दोपहरियाके फूल भगवान् शंकरपर नहीं चढ़ाने चाहिये। वीरमित्रोदयमें इनका संकलन किया गया है११ ।

भगवान ने संसार क्यों बनाया?

उपनिषद कहते हैं - एकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। एकोऽयं बहु स्यां प्रजायेय। ईश्वर अकेले थे और उनको लगा की अकेले रहना संतुष्टिदायक नहीं है। इसलिए, उन्होंने संगती की कामना की और लोक बनाने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए, उन्होंने स्वयं को बढ़ाया और हमारे चारों ओर सब कुछ बन गया। सृष्टि का यह कार्य विविधता और जीवन को अस्तित्व में लाने का ईश्वर का तरीका था। यह व्याख्या हमें याद दिलाती है कि संसार और इसमें विद्यमान हर वस्तु ईश्वर के आनंद की इच्छा की अभिव्यक्ति है। यह सभी प्राणियों की एकता का भी प्रतीक है, क्योंकि हम सभी एक ही दिव्य स्रोत से आए हैं।

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कुरुक्षेत्र में सन्निहित योद्धाओं में से सबसे ताकतवर कौन था ?

श्री-सुवर्णवृष्टिं कुरु मे गृहे श्री-कुबेरमहालक्ष्मी हरिप्रिया पद्मायै नमः ।....

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