व्यास महर्षि ने महाभारत लिखा। उनके शिष्य वैशम्पायन ने जनमेजय के सर्प यज्ञ स्थल पर महाभारत सुनाया। उग्रश्रवा सौति वहां उपस्थित थे और उन्होंने वैशम्पायन की कथा के आधार पर नैमिषारण्य आकर वहां ऋषियों को सुनाया। आज हमारे पास जो महाभारत है वह यही है।
नैमिषारण्य की ८४ कोसीय परिक्रमा है । यह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शुरू होकर अगले पन्द्रह दिनों तक चलती है ।
कशिं कुक्ष वरवर अञ्जनावरपुत्र आवेशयावेशय ॐ ह्रीं हनुमन् फट् ।....
कशिं कुक्ष वरवर अञ्जनावरपुत्र आवेशयावेशय ॐ ह्रीं हनुमन् फट् ।