ॐ नमः शिवाय - मन्त्र बोलकर ललाट, ग्रीवा, भुजाओं और हृदय में भस्म लगायें। 

अथवा निम्नलिखित भिन्न-भिन्न मन्त्र बोलते हुए भिन्न-भिन्न स्थानोंमें भस्म लगाये -

ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः -  ललाट

ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम् - ग्रीवा

ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम् -  भुजा 

ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् -  हृदय

दोपहर से पहले जल मिलाकर भस्म लगाना चाहिए। मध्याह्न में चन्दन मिलाकर और शामको सूखा ही भस्म लगाना चाहिये । 

अँगूठे से ऊर्ध्वपुण्ड्र करने के बाद मध्यमा और अनामिका से बायीं ओर से प्रारम्भ कर दाहिनी ओर भस्म लगायें । इसके बाद अँगूठे से दाहिनी ओर से प्रारम्भ कर बायीं ओर लगायें । इस प्रकार तीन रेखाएँ खिंच जाती हैं। तीनों अँगुलियों के मध्य का स्थान रिक्त रखें । बायें नेत्रसे दाहिने नेत्रतक ही भस्मकी रेखाएँ हों। इससे अधिक लम्बी और छोटी होना हानिकर है। 

भस्मका अभिमन्त्रण - भस्म लगाने से पहले भस्म को अभिमन्त्रित कर लेना चाहिये। भस्म को बायीं हथेली पर रखकर जलादि मिलाकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़े -

ॐ अग्निरिति भस्म। ॐ वायुरिति भस्म । ॐ जलमिति भस्म । ॐ स्थलमिति भस्म । ॐ व्योमेति भस्म । ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म । ॐ मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति ।

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गणेश जी किस चीज़ के स्वामी हैं?

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व्यासजी ने १८ पर्वात्मक एक पुराणसंहिता की रचना की। इसको लोमहर्षण और उग्रश्रवा ने ब्रह्म पुराण इत्यादि १८ पुराणों में विभजन किया।

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