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आपकी वेबसाइट से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।🙏 -आर्या सिंह

वेदधारा ने मेरे जीवन में बहुत सकारात्मकता और शांति लाई है। सच में आभारी हूँ! 🙏🏻 -Pratik Shinde

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏🙏 -विजय मिश्रा

हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

आपको धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद -Ghanshyam Thakar

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रेवती नक्षत्र का उपचार और उपाय क्या है?

जन्म से बारहवां दिन या छः महीने के बाद रेवती नक्षत्र गंडांत शांति कर सकते हैं। संकल्प- ममाऽस्य शिशोः रेवत्यश्विनीसन्ध्यात्मकगंडांतजनन सूचितसर्वारिष्टनिरसनद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं नक्षत्रगंडांतशान्तिं करिष्ये। कांस्य पात्र में दूध भरकर उसके ऊपर शंख और चन्द्र प्रतिमा स्थापित किया जाता है और विधिवत पुजा की जाती है। १००० बार ओंकार का जाप होता है। एक कलश में बृहस्पति की प्रतिमा में वागीश्वर का आवाहन और पूजन होता है। चार कलशों में जल भरकर उनमें क्रमेण कुंकुंम, चन्दन, कुष्ठ और गोरोचन मिलाकर वरुण का आवाहन और पूजन होता है। नवग्रहों का आवाहन करके ग्रहमख किया जाता है। पूजा हो जाने पर सहस्राक्षेण.. इस ऋचा से और अन्य मंत्रों से शिशु का अभिषेक करके दक्षिणा, दान इत्यादि किया जाता है।

गणेश चतुर्थी पर क्यों गणेश मूर्ति का विसर्जन होता है?

गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा मिट्टी की मूर्ति के द्वारा की जाती है। यह मूर्ति अस्थायी है। पूजा के बाद इसे पानी में इसलिए डुबोया जाता है ताकि वह अशुद्ध न हो जाए।

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लव और कुश का जन्म कहां हुआ था ?

वंश वृद्धि के अलावा विवाह का एक मुख्य उद्देश्य यह है कि पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने सहज विलास भाव से बचकर काम को एक जगह पर केन्द्रित करें। आपको मालूम ही होगा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य - ये छः मनुष्य के शत्रु माने जाते है�....

वंश वृद्धि के अलावा विवाह का एक मुख्य उद्देश्य यह है कि पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने सहज विलास भाव से बचकर काम को एक जगह पर केन्द्रित करें।
आपको मालूम ही होगा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य - ये छः मनुष्य के शत्रु माने जाते हैं।
इनमें से काम को काबू में रखना बहुत ही कठिन होता है।
विश्वमित्र जैसे बडे ऋषि भी संयम खो बैठे हैं।
धर्म ने यह तरीका दिया है कि काम को दांपत्य में सीमित रखो।
धीरे धीरे वह काबू में आएगा और समय जाने पर नष्ट भी हो जाएगा।
धर्म कहता है कि जो गृहस्थ काम को दांपत्य में सीमित रखता है वह ब्रह्मचारी ही होता है।
वह सदाचारी होता है।
इस कारण से ही विवाह एक धार्मिक संस्कार है और पत्नी धर्म-पत्नी है।
हमारी संस्कृति में विवाह देव, अग्नि और श्रेष्ठ जन को साक्षी रखकर होता है।

पर स्त्री और पर पुरुष कौन हैं?
सनातन धर्म के मर्यादाओं के अनुसार पत्नी पति के लिए स्व स्त्री है, पति पत्नी के लिए स्व पुरुष।
इसके अतिरिक्त जितने विवाह-पूर्व या विवाहेतर संबन्ध हैं वे सारे या तो पर-स्त्री या पर-पुरुष संबन्ध हैं।

अब आंखें बन्द करके आप जी नहीं पाएंगे।
सामने से कोई पर-स्त्री या पर-पुरुष जाएं तो दीख तो पडेंगे।
तब क्या करेंगे।
उसके शारीरिक सौन्दर्य को देखकर कामोद्वेग हो सकता है।
सबसे पहले बिना कारण के किसी अन्य पुरुष या स्त्री की ओर ध्यान मत दो।
आंखों से दिखाई देने पर भी मन से मत देखो, ध्यान मत दो।

यहां पर दो तरीके हैं -
जो वेदान्ती लोग हैं, जिनका मन के ऊपर संयम है, नियंत्रण है वह उस शारीरिक सौन्दर्य की प्रतीति को यह कहकर निराकरण करेंगे कि - वह क्या है? मल और मूत्र से भरा हुआ एक मलपात्र ही तो है।
यह हुआ पहला तरीका।
दूसरा - अपनी पत्नी को छोडकर बाकी सब स्त्रियों को अपनी माता ही मानो।
बहन को, बेटी को भी, बहू को भी, सब मां के समान।
बाहर की हर नारी मां के समान।
यही हमारी संस्कृति, यही हमारे धर्म शास्त्र बताते हैं।
आम आदमी के लिए यही आसान तरीका है।
वेदान्त बुद्धि आना इतना आसान नहीं है।

भगवान ने अपने रामावतार में इस संयम का पालन करके दिखाया।
रामचन्द्रः परान् दारान् चक्षुषा नाभिवीक्षते। - कहता है वाल्मीकि रामायण ।
श्रीरामचन्द्रजी पर स्त्रियों को अपनी आंखों से नहीं देखते थे।
राजा थे, ११,००० साल शासन किया है, यह तो संभव नहीं है।
इसका अर्थ है - पर स्त्रियों को वे काम भाव से कभी नहीं देखते थे।

पर राजा थे, अगर कोई स्त्री पसंद आई तो उसे विवाह कर सकते थे, इस पर कोई पाबंदी नहीं थी।
स्वयं उनके पिताजी की कितनी पत्नियां थी?
इसलिए भगवान ने एकपत्नीव्रत का नियम लाया।
मेरे राज्य में रामराज्य में एक पुरुष एक ही स्त्री से विवाह करेगा।
और उन्होंने खुद इसका पालन करके दिखाये।
लंका से लौटने के कुछ समय के अन्दर ही सीताजी को वनवास में जाना पडा और वे वहीं से अन्तर्धान हो गयी।
लेकिन भगवान ने ११,००० साल तक दूसरा विवाह नहीं किया।
क्यों कि वे सीताजी को छोडकर अन्य सभी स्त्रियों को मां-समान ही मानते थे।
किससे करेंगे विवाह?
उनका मन इतना शुद्ध था कि आप उनका समरण करेंगे तो आप भी शुद्ध हो जाएंगे, पवित्र हो जाएंगे।

लंका में रावण अपनी प्रम अब्यर्थना को लेकर सीता माता के पास कई बार गया।
माता उसे भगा देती थी।
कुंभकर्ण ने रावण को सलाह दिया - आप मायावी हो, राम का रूप धारण करके उसके पास जाओ और अपने काम की पूर्ति करो, उसे कैसे पता चलेगा।
रावण ने कहा -
उसे पता चलें या न चलें उससे कोई फर्क नहीं पडता।
मैं ने यह भी करके देखा है।
कर्तुश्चेतसि रामरूपममलं दूर्वादलश्यामलम् ।
तुच्छं ब्रह्मपदं परं परवधूसंगप्रसंगः कुतः ॥
रूप धारण करना क्या? राम के बारे में सोचने पर भी मन से काम निकल जाता है।
ब्रह्मपद भी तुच्छ लगने लगता है।
उस नारी के साथ संग का ख्याल भी नहीं आता।

देखिए, श्रीराम जी की पवित्रता, शुद्धता।
यह कौन कह रहा है - रावण जिस को सैकडों स्त्रियों का संग किये बिना नींद नहीं आती।
और हम सब इस महान परंपरा के वारिस हैं, श्रीराम जी ने अपने ही दृष्टांत से यह सिखाया है, यह हमपर उनकी बडी कृपा है।
मर्तावतारात्त्विह मर्त्यसिक्षणम्
हमें ये सब सिखाना - यह भी उनके अवतार का एक उद्देश्य था।

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