अर्थानामर्जने दुःखमर्जितानां च रक्षणे |
आये दुःखं व्यये दुःखं धिगर्थाः कष्टसंश्रयाः ||

 

धन कमाने के लिए परिश्रम करना पडता है और उस से दुख उत्पन्न होता है | फिर कमाए हुए धन को बचाने के लिए दुःख होता है | जब धन कमाना होता है तब भी दुख ही होता है और जब धन का व्यय हो जाता है तब भी दुख ही होता है | यह धन ही दुख का आधार है |

 

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वेदधारा ने मेरी सोच बदल दी है। 🙏 -दीपज्योति नागपाल

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

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गवां वा ब्राह्मणानां वा वधो यत्र च दस्युभिः। असावयज्ञियो देशः - जिस देश में दुष्टों द्वारा गौ और तपोनिष्ठ ब्राह्मणों का वध होता है, वह देश यज्ञ के लिए योग्य नहीं है।

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