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Hamen isase bahut jankari milti hai aur mujhe mantron ki bhi jankari milti hai -User_spaavj

आपकी वेबसाइट से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।🙏 -आर्या सिंह

अद्वितीय website -श्रेया प्रजापति

आपका हिंदू शास्त्रों पर ज्ञान प्रेरणादायक है, बहुत धन्यवाद 🙏 -यश दीक्षित

यह वेबसाइट बहुत ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।🌹 -साक्षी कश्यप

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माथे पर तिलक, भस्म, चंदन का लेप आदि क्यों लगाते हैं?

माथे पर, खासकर दोनों भौहों के बीच की जगह को 'तीसरी आंख' या 'आज्ञा चक्र' का स्थान माना जाता है, जो आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक है। यहां तिलक लगाने से आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ने का विश्वास है। 2. तिलक अक्सर धार्मिक समारोहों के दौरान लगाया जाता है और इसे देवताओं के आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। 3. तिलक की शैली और प्रकार पहनने वाले के धार्मिक संप्रदाय या पूजा करने वाले देवता का संकेत दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, वैष्णव आमतौर पर U-आकार का तिलक लगाते हैं, जबकि शैव तीन क्षैतिज रेखाओं वाला तिलक लगाते हैं। 4. तिलक पहनना अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को व्यक्त करने का एक तरीका है, जो अपने विश्वासों और परंपराओं की एक स्पष्ट याद दिलाता है। 5. तिलक धार्मिक शुद्धता का प्रतीक है और अक्सर स्नान और प्रार्थना करने के बाद लगाया जाता है, जो पूजा के लिए तैयार एक शुद्ध मन और शरीर का प्रतीक है। 6. तिलक पहनना भक्ति और श्रद्धा का प्रदर्शन है, जो दैनिक जीवन में दिव्य के प्रति श्रद्धा दिखाता है। 7. जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, उसे एक महत्वपूर्ण एक्यूप्रेशर बिंदु माना जाता है। इस बिंदु को उत्तेजित करने से शांति और एकाग्रता बढ़ने का विश्वास है। 8. कुछ तिलक चंदन के लेप या अन्य शीतल पदार्थों से बने होते हैं, जो माथे पर एक शांत प्रभाव डाल सकते हैं। 9. तिलक लगाना हिंदू परिवारों में दैनिक अनुष्ठानों और प्रथाओं का हिस्सा है, जो सजगता और आध्यात्मिक अनुशासन के महत्व को मजबूत करता है। 10. त्योहारों और विशेष समारोहों के दौरान, तिलक एक आवश्यक तत्व है, जो उत्सव और शुभ वातावरण को जोड़ता है। संक्षेप में, माथे पर तिलक लगाना एक बहुआयामी प्रथा है, जिसमें गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व है। यह अपने विश्वास की याद दिलाता है, आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है, और शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है।

राजा दिलीप और नन्दिनी

राजा दिलीप के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी रानी सुदक्षिणा के साथ वशिष्ठ ऋषि की सलाह पर उनकी गाय नन्दिनी की सेवा की। वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें बताया कि नन्दिनी की सेवा करने से उन्हें पुत्र प्राप्त हो सकता है। दिलीप ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ नन्दिनी की सेवा की, और अंततः उनकी पत्नी ने रघु नामक पुत्र को जन्म दिया। यह कहानी भक्ति, सेवा, और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है। राजा दिलीप की कहानी को रामायण और पुराणों में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि कैसे सच्ची निष्ठा और सेवा से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

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