इंदौर से २० किमी की दूरी पर स्थित स्वयंभू केवडेश्वर महादेव मंदिर बहुत ही प्राचीन स्थान है।
इसे बाबा दूधाधारी महाराजजी की तपोभूमि माना जाता है।
बाबाजी के तप से प्रसन्न होकर महादेव इस घने जंगल में प्रकट हुए थे।
यहां का शिवलिंग हर साल एक तिल के परिमाण से आकार में बढता है।
यहां पर त्रयम्बपुरी महाराज जी ने भी १०८ साल तक तपस्या की थी।
मंदिर के पास एक केवडे के वृक्ष की जड से शिप्रा नदी निकलती है।
इसके पास एक कुण्ड है जहां भक्त जन स्नान करते हैं।
सावन सोमवार को अधिक संख्या में भक्त आते हैं और सोमवती अमावास्या में मेला लगता है।
महादेव द्वारा दक्ष को उपदेश
यद्यपि मैं सबका ईश्वर और स्वतन्त्र हूँ, तो भी सदा ही अपने भक्तों के अधीन रहता हूँ।
चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरा भजन करते हैं -
इन सब भक्तों में चौथा ज्ञानी ही मुझे अधिक प्रिय है।
वह मेरा ही रूप माना जाता है।
मैं ही जगत का कारण हूं।
मैं ही ब्रह्मा और विष्णु हूं।
मैं ही जगत की सृष्टि, पालन और संहार करता हूं।
मैं, ब्रह्मा और विष्णु एक ही हैं।
जो हम तीनों में भेद नहीं देखता उसे ही शान्ति मिलती है।
जो हम तीनों में भेद भाव रखेगा, वह नरक में जा गिरेगा।
जो विष्णुभक्त मेरी निन्दा करेगा या शिवभक्त विष्णु की निन्दा करेगा उसे श्राप लगेगा और उसे कभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी।
मार्कंडेय का जन्म ऋषि मृकंडु और उनकी पत्नी मरुद्मति के कई वर्षों की तपस्या के बाद हुआ था। लेकिन, उनका जीवन केवल 16 वर्षों के लिए निर्धारित था। उनके 16वें जन्मदिन पर, मृत्यु के देवता यम उनकी आत्मा लेने आए। मार्कंडेय, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, शिवलिंग से लिपटकर श्रद्धा से प्रार्थना करने लगे। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अमर जीवन का वरदान दिया, और यम को पराजित किया। यह कहानी भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की कृपा को दर्शाती है।
आसीना सरसीरुहे स्मितमुखी हस्ताम्बुजैर्बिभ्रति दानं पद्मयुगाभये च वपुषा सौदामिनीसन्निभा । मुक्ताहारविराजमानपृथुलोत्तुङ्गस्तनोद्भासिनी पायाद्वः कमला कटाक्षविभवैरानन्दयन्ती हरिम् ॥
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