गणेश मंत्र का अधिकार किसी एक जाति को ही है ऐसा नहीं है।
सृष्टि करते समय, ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्रों को प्रजनन के लिए नियुक्त किया।
उनमें से कश्यप महर्षि ने अपनी १४ पत्नियों द्वारा पशु-पक्षी, नदी, पर्वत, देव, असुर, और नाग – इन सबके पूर्वज बने।
गणेशजी को तपस्या से प्रसन्न करके ही कश्यप महर्षि इस उद्यम में उतरे थे।
इसके बाद कश्यप महर्षि अपनी संतानों को गणेश मंत्र का उपदेश देने लगे – किसी प्राणि वर्ग को एकाक्षर मंत्र तो किसी को अष्टाक्षर मंत्र।
अपने-अपने वर्ग के प्राप्त मंत्रों द्वारा सारे प्राणी गणेशजी की साधना करने लगे और इस साधना के माध्यम से उन्हें साक्षात्कार किया।
देवों ने उन्हें सुमुख के रूप में साक्षात्कार किया – सुमुख यानी सुंदर चेहरे वाला।
ऋषियों ने उन्हें एकदन्त के रूप में साक्षात्कार किया।
गंधर्वों और किन्नरों के सामने भगवान श्री गणेश भूरे रंग में प्रकट हुए – और उन्होंने गणेशजी को 'कपिल' नाम से पुकारा।
गुह्यक और सिद्ध ने उन्हें गजकर्णक के रूप में साक्षात्कार किया।
मनुष्यों के सामने भगवान लंबोदर बनकर प्रकट हुए।
शेरों, बाघों और अन्य हिंस्र जानवरों ने गणेशजी को विकट के रूप में साक्षात्कार किया।
वृक्षों और लताओं ने उन्हें विघ्ननाशक के रूप में देखा।
पक्षियों के सामने गणेशजी गणाधिप के रूप में प्रकट हुए।
साँपों और बिच्छुओं जैसे जहरीले प्राणियों ने उन्हें धूम्रकेतु के रूप में साक्षात्कार किया, जिनका रंग धुएँ के समान था।
समुद्रों और तालाबों जैसे जलाशयों ने उन्हें गणाध्यक्ष के रूप में साक्षात्कार किया।
छोटे-छोटे कीड़ों ने उन्हें भालचन्द्र के रूप में पाया – माथे पर बालचन्द्र के साथ।
बाकी सब प्राणियों ने तपस्या करके उन्हें गजानन के रूप में पाया।
सुमुखश्चेकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः
गणेशजी के अनन्त असंख्य नामों में से ये बारह नाम सबसे मुख्य हैं।
हर नाम के साथ उनका एक विशेष रूप भी जुड़ा हुआ है।
इन नामों के स्मरण से क्या लाभ है?
द्वादशैतानि नामानि यः पठेत शृणुयादपि
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे सर्वकार्येषु विघ्नस्तस्य न जायते।
विद्यारंभ, विवाह, कहीं जाते समय, विवाद में, संग्राम में – जो भी इन नामों का स्मरण करेगा, उसे कभी विघ्नों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
सहस्रावर्तनात्...
अथर्वशीर्ष का सहस्र आवर्तन करने से जो भी मनोकामना है, वह पूरी हो जाती है।
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति...
अथर्वशीर्ष से गणेशजी का अभिषेक करने से व्यक्ति वाक्पटु बन जाता है।
चतुर्थी के दिन उपवास रखकर इसका जाप करने से विद्या प्राप्त होती है – यह ऋषि अथर्वा का वचन है।
ब्रह्माद्यावरणं...
ब्रह्मसत्य को, परम सत्य को छिपाने वाली माया शक्ति को इन मंत्रों की साधना से जान लेने पर सारे भय दूर हो जाते हैं।
गणेशजी के ब्रह्मादि आवरण देवताओं और परिवार देवताओं को जान लेने से सारे भय दूर हो जाते हैं।
यो दूर्वांकुरैर्यजति
जो गणेशजी का दूर्वांकुर से हवन करेगा, वह कुबेर के समान धनी हो जाएगा।
यो लाजैर्यजति
जो लाज से हवन करेगा, उसे यश और मेधा शक्ति प्राप्त होगी।
यो मोदकसहस्रेण
जो सहस्र मोदक से हवन करेगा, उसकी जो भी अभिलाषा है, वह पूरी हो जाएगी।
यः साज्य...
जो घी और समिधा की आहुति देगा अथर्वशीर्ष के मंत्रों से, उसे सब कुछ मिल जाएगा।
अष्टो ब्राह्मणान्
अष्ट विनायक के स्थान पर आठ उत्तम ब्राह्मणों को बिठाकर उनकी पूजा और सम्मान करने से सूर्य के समान तेज प्राप्त होगा।
सूर्यग्रहे
सूर्यग्रहण के समय पुण्य नदी में या गणेशजी की मूर्ति के सामने जाप करने से ये मंत्र सिद्ध हो जाते हैं।
मंत्र सिद्ध व्यक्ति –
महाविघ्नात्प्रमुच्यते – सारे विघ्नों से मुक्त हो जाता है।
महादोषात् प्रमुच्यते – सारे दोषों से मुक्त हो जाता है।
महापापात् प्रमुच्यते – सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
महाप्रत्यवायात् – सभी हानियों और गिरावटों से बच जाता है।
स सर्ववित् – वह सब कुछ जानने वाला और बड़ा ज्ञानी बन जाता है।
य एवं वेद – जो इसे इस प्रकार जान लेता है।
इत्युपनिषद् – यह इस उपनिषद का कहना है।
अथर्वशीर्ष यहाँ समाप्त होता है।
इसके आगे फिर से शांति पाठ है –
सह नाववतु
आचार्य और शिष्य साथ में कहते हैं –
सह नौ अवतु – हम दोनों की साथ में रक्षा कीजिए।
सह नौ भुनक्तु – हम दोनों का साथ में पोषण कीजिए।
सह वीर्यं करवावहै – जो भी हमने साथ में सीखा है, उसे प्रयोग में लाने की शक्ति और उत्साह हम में आए।
तेजस्विनावधीतमस्तु – जो भी हमने सीखा है, वह तेजोमय हो जाए।
मा विद्विषावहै – हम दोनों के बीच कभी भी शत्रुता न आए।
ॐ शान्ति...शान्ति...शान्ति
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