ब्रह्म सूक्त

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पृथु राजा की कहानी

एक सम्राट था वेन। बडा अधर्मी और चरित्रहीन। महर्षियों ने उसे शाप देकर मार दिया। उसके बाद अराजकता न फैलें इसके लिए महर्षियों ने वेन के शरीर का मंथन करके राजा पृथु को उत्पन्न किया। तब तक अत्याचार से परेशान भूमि देवी ने सारे जीव जालों को अपने अंदर खींच लिया था। उन्हें वापस करने के लिए राजा ने कहा तो भूमि देवी नही मानी। राजा ने अपना धनुष उठाया तो भूमि देवी एक गाय बनकर भाग गयी। राजा ने तीनों लोकों में उसका पीछा किया। गौ को पता चला कि यह तो मेरा पीछा छोडने वाला नहीं है। गौ ने राजा को बताया कि जो कुछ भी मेरे अंदर हैं आप मेरा दोहन करके इन्हें बाहर लायें। आज जो कुछ भी धरती पर हैं वे सब इस दोहन के द्वारा ही प्राप्त हुए।

रेवती नक्षत्र का उपचार और उपाय क्या है?

जन्म से बारहवां दिन या छः महीने के बाद रेवती नक्षत्र गंडांत शांति कर सकते हैं। संकल्प- ममाऽस्य शिशोः रेवत्यश्विनीसन्ध्यात्मकगंडांतजनन सूचितसर्वारिष्टनिरसनद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं नक्षत्रगंडांतशान्तिं करिष्ये। कांस्य पात्र में दूध भरकर उसके ऊपर शंख और चन्द्र प्रतिमा स्थापित किया जाता है और विधिवत पुजा की जाती है। १००० बार ओंकार का जाप होता है। एक कलश में बृहस्पति की प्रतिमा में वागीश्वर का आवाहन और पूजन होता है। चार कलशों में जल भरकर उनमें क्रमेण कुंकुंम, चन्दन, कुष्ठ और गोरोचन मिलाकर वरुण का आवाहन और पूजन होता है। नवग्रहों का आवाहन करके ग्रहमख किया जाता है। पूजा हो जाने पर सहस्राक्षेण.. इस ऋचा से और अन्य मंत्रों से शिशु का अभिषेक करके दक्षिणा, दान इत्यादि किया जाता है।

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दामोदर किसका नाम है ?

ब्रह्म॑जज्ञा॒नं प्र॑थ॒मं पु॒रस्ता᳚त् । विसीम॒तस्सु॒रुचो॑ वे॒न आ॑वः । स बु॒ध्निया॑ उप॒मा अ॑स्य वि॒ष्ठाः । स॒तश्च॒ योनि॒मस॑तश्च॒ विवः॑ । पि॒ता वि॒राजा॑मृष॒भो र॑यी॒णाम् । अन्तरि॑क्षं वि॒श्वरूप॒ आवि॑वेश । तम॒र्कैर॒....

ब्रह्म॑जज्ञा॒नं प्र॑थ॒मं पु॒रस्ता᳚त् । विसीम॒तस्सु॒रुचो॑ वे॒न आ॑वः ।
स बु॒ध्निया॑ उप॒मा अ॑स्य वि॒ष्ठाः । स॒तश्च॒ योनि॒मस॑तश्च॒ विवः॑ ।
पि॒ता वि॒राजा॑मृष॒भो र॑यी॒णाम् । अन्तरि॑क्षं वि॒श्वरूप॒ आवि॑वेश ।
तम॒र्कैर॒भ्य॑र्चन्ति व॒त्सम् । ब्रह्म॒ सन्तं॒ ब्रह्म॑णा व॒र्धय॑न्तः ।
ब्रह्म॑ दे॒वान॑जनयत् । ब्रह्म॒ विश्व॑मि॒दं जग॑त् ।
ब्रह्म॑णः क्ष॒त्रन्निर्मि॑तम् । ब्रह्म॑ ब्राह्म॒ण आ॒त्मना᳚ ।
अ॒न्तर॑स्मिन्ने॒मे लो॒काः । अ॒न्तर्विश्व॑मि॒दं जग॑त् ।
ब्रह्मै॒व भू॒तानां॒ ज्येष्ठम्᳚ । तेन॒ को॑ऽर्हति॒ स्पर्धि॑तुम् ।
ब्रह्म॑न्दे॒वास्त्रय॑स्त्रिꣳशत् । ब्रह्म॑न्निन्द्रप्रजाप॒ती ।
ब्रह्म॑न् ह॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ । ना॒वीवा॒न्तः स॒माहि॑ता ।
चत॑स्र॒ आशाः॒ प्रच॑रन्त्व॒ग्नयः॑ । इ॒मं नो॑ य॒ज्ञं न॑यतु प्रजा॒नन् ।
घृ॒तं पिन्व॑न्न॒जरꣳ॑ सु॒वीरम्᳚ । ब्रह्म॑स॒मिद्भ॑व॒त्याहु॑तीनाम् ।

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