चौरासी वैष्णव की वार्ता

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जटायु और सम्पाति

गरुड के भाई हैं सूर्य का सारथी अरुण। अरुण के पुत्र हैं जटायु और सम्पाति जिनके बारे में रामायण में उल्लेख है। उनकी मां थी श्येनी।

अनाहत चक्र के गुण और स्वरूप क्या हैं?

अनाहत चक्र में बारह पंखुडियां हैं। इनमें ककार से ठकार तक के वर्ण लिखे रहते हैं। यह चक्र अधोमुख है। इसका रंग नीला या सफेद दोनों ही बताये गये है। इसके मध्य में एक षट्कोण है। अनाहत का तत्त्व वायु और बीज मंत्र यं है। इसका वाहन है हिरण। अनाहत में व्याप्त तेज को बाणलिंग कहते हैं।

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अर्जुन और चित्रांगदा का बेटा कौन है ?

दामोदरदास हरसानीकी वार्ता

एक समय श्रीआचार्यजी महाप्रभू पृथ्वी परिक्रमाकौं पधारे हुते तब तहां दामोदरदास श्रीआचार्यजी महाप्रभून के साथ है सो श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप दामोदरदासों अपने श्रीमुखसों द्रमला कहते जो यह मार्ग तेरेलिये प्रगट कोनों है सो श्रीआचार्यजी महाप्रभू सो पृथ्वी परिक्रमा करते श्री गोकुल पधारे सो श्री गोकुलमें एक चांतरा श्रीगोविंदघाट ऊपर हुतो तहां श्रीआचार्यजी महाप्रभू आय विश्राम करते ताठोर ऊपर श्रीआचार्यजी महाप्रभूनकी बैठक है और श्रीद्वारकानाथजीको मन्दिर है तहां श्रीआचार्यजी महाप्रभू बैठे हुते ता समय श्रीआचार्यजी महाप्रभूनको महाचिंता उपजी जो श्रीठाकुरजीने तो आज्ञा दीनी है जो तुम जीवनकों ब्रह्मसंबन्ध करावो तब श्रीआचार्यजी। महाप्रभू अपने मन में विचारें जो जीवतो दोषवंत है और श्रीपुरुषोत्तमजीतो गुणनिधान हैं तातें केसे संबन्ध होय तातें चिन्ता उपजी सो अत्यंत आतुर भए तासमय श्रीठाकुरजी आप तत्काल प्रगट होयकें श्रीआचार्यजी महाप्रभूनसों पूंछे जो तुम चिंता आतुर क्यों हों तब श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप कहै जो जीवको स्वरूपतौ तुम जानतही हो दोषवंत है सो तुमसों संबन्ध केसे होय तब श्रीठाकुररजी आप कहैं जो तुम जीवनकों ब्रह्मसंबन्ध करावोगे तिनको हौं अंगीकार करूंगो तुम जीवनकौं नाम देउगे तिनके सकल दोष निवर्त होयगे ये बातें श्रावणशुदि ११ के दिन अर्द्धरात्रिकौं भई प्रातकाल पवित्राद्वादशी हुती ताते पवित्रा सूतको करिराख्यो हुतो सो पवित्रा श्रीपूररुषोत्तमजीकौं पहरायौ मिश्री भोग धरी ता समयके ये अक्षरहुते ताकों श्रीआचार्यजी महाप्रभू आप सिद्धांतरहस्य ग्रंथ कीये हैं। सो श्लोक ॥ श्रावणस्यामले पक्षे एकादश्यां महानिशि।

साक्षाद्भगवताप्रोक्तमेतदक्षरमुच्यते ॥ १॥ 

ता समय श्रीआचार्यजी महाप्रभुनने पूछो जो दमलाते कुछ सुन्या तब दामोदरदासने बीनती कीनी जो महाराज श्रीठाकुरजीके वचन सुनतौसही परन्तु कुछ समझो नहीं तब श्रीआचार्यजी महाप्रभूननें कही जो मोको श्रीठाकुरजीने आज्ञा कीनी है जो तुम जीवनकौं ब्रह्मसंबंध करावोगे तिनकौं हों अंगिकार करूंगो तिनके सकल दोष निवृत्त होयगे ताते ब्रह्मसंबंध अवश्य करनो ॥ प्रसंग ॥१॥

बहुर श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने श्रीठाकरजीके पास यह माग्यो जो मेरे आगे दामोदरदासकी देह न छूटे और श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने दामोदरदास मों कछू गोप्य न राखते

और श्रीआचार्यजी महाप्रभू श्रीभागवत अहर्निस देखते कथा कहते और मार्गको सिद्धांत भगवतलीला रहस्य श्रीआचार्यजीमहाप्रभू आप दामोदरदासके हृदयमें स्थापन कीयो । ॥ प्रसंग ॥ २॥

और एकसमय दामोदरदास और श्रीगुसाईजी एकान्वमें बैठे हुते तब श्रीगुसाईजीने दामोदरदाससौ पूंछौ जो तुम श्रीआचार्यजी महाप्रभूनको कहाकार जानतही तब दामोदरदासने कही जो हम तौ श्रीआचार्यजी महापभूनको जगदीश जो श्रीठाकुरजी तिनहूंते अधिककारि जानत हैं तब श्रीगुसांईजी दामोदरदाससोकहैं जो तुम ऐसे क्यों कहत हो जो

श्रीठाकुरजीते श्रीआचार्यजी बडे हैं तब दामोदरदासनें कही जो महाराज दान बडोके दाता बडौ काहूके पास धन बहुत

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