दिनेशं सुरं दिव्यसप्ताश्ववन्तं
सहस्रांशुमर्कं तपन्तं भगं तम्।
रविं भास्करं द्वादशात्मानमार्यं
त्रिलोकप्रदीपं ग्रहेशं नमामि।
निशेशं विधुं सोममब्जं मृगाङ्कं
हिमांशुं सुधांशुं शुभं दिव्यरूपम्।
दशाश्वं शिवश्रेष्ठभाले स्थितं तं
सुशान्तं नु नक्षत्रनाथं नमामि।
कुजं रक्तमाल्याम्बरैर्भूषितं तं
वयःस्थं भरद्वाजगोत्रोद्भवं वै।
गदावन्तमश्वाष्टकैः सम्भ्रमन्तं
नमामीशमङ्गारकं भूमिजातम्।
बुधं सिंहगं पीतवस्त्रं धरन्तं
विभुं चात्रिगोत्रोद्भवं चन्द्रजातम्।
रजोरूपमीड्यं पुराणप्रवृत्तं
शिवं सौम्यमीशं सुधीरं नमामि।
सुरं वाक्पतिं सत्यवन्तं च जीवं
वरं निर्जराचार्यमात्मज्ञमार्षम्।
सुतप्तं सुगौरप्रियं विश्वरूपं
गुरुं शान्तमीशं प्रसन्नं नमामि।
कविं शुक्लगात्रं मुनिं शौमकार्षं
मणिं वज्ररत्नं धरन्तं विभुं वै।
सुनेत्रं भृगुं चाभ्रगं धन्यमीशं
प्रभुं भार्गवं शान्तरूपं नमामि।
शनिं काश्यपिं नीलवर्णप्रियं तं
कृशं नीलबाणं धरन्तं च शूरम्।
मृगेशं सुरं श्राद्धदेवाग्रजं तं
सुमन्दं सहस्रांशुपुत्रं नमामि।
तमः सैंहिकेयं महावक्त्रमीशं
सुरद्वेषिणं शुक्रशिष्यं च कृष्णम्।
वरं ब्रह्मपुत्रं बलं चित्रवर्णं
महारौद्रमर्धं शुभं चित्रवर्णम्।
द्विबाहुं शिखिं जैमिनीसूत्रजं तं
सुकेशं विपापं सुकेतुं नमामि।

 

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