योऽसौ वज्रधरो देव आदित्यानां प्रभुर्मतः।
सहस्रनयनश्चन्द्र- ग्रहपीडां व्यपोहतु।
मुखं यः सर्वदेवानां सप्तार्चिरमितद्युतिः।
चन्द्रोपरागसम्भूतामग्निः पीडां व्यपोहतु।
यः कर्मसाक्षी लोकानां यमो महिषवाहनः।
चन्द्रोपरागसम्भूतां ग्रहपीडां व्यपोहतु।
रक्षोगणाधिपः साक्षात् प्रलयानिलसन्निभः।
करालो निर्ऋतिश्चन्द्रग्रहपीडां व्यपोहतु।
नागपाशधरो देवो नित्यं मकरवाहनः।
सलिलाधिपतिश्चन्द्र- ग्रहपीडां व्यपोहतु।
प्राणरूपो हि लोकानां वायुः कृष्णमृगप्रियः।
चन्द्रोपरागसम्भूतां ग्रहपीडां व्यपोहतु।
योऽसौ निधिपतिर्देवः खड्गशूलधरो वरः।
चन्द्रोपरागसम्भूतं कलुषं मे व्यपोहतु।
योऽसौ शूलधरो रुद्रः शङ्करो वृषवाहनः।
चन्द्रोपरागजं दोषं विनाशयतु सर्वदा।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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