नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परसिपराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम्।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम्।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम्।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम्।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां
पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम्।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्या-
मत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम्।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम्।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्या-
मशेषलोकैकविशेषिताभ्याम्।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम्।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम्।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम्।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम्।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवलोकमेति।
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम्।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो सदा युवा हैं,
जिनके शरीर आपस में प्रेमपूर्वक जुड़े हैं,
जो पर्वतराज की पुत्री (पार्वती) और
बैल ध्वज धारण करने वाले (शिव) हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम्।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो आनंद के उत्सव लाते हैं,
जो उन्हें प्रणाम करने वालों को वरदान देते हैं,
और जिनके चरण नारायण द्वारा पूजित हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम्।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो बैल की सवारी करते हैं,
जिनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र ने की है,
और जो विभूति से सुशोभित हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम्।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो जगत के स्वामी हैं,
जो संसार के स्वामी हैं,
जो विजय के प्रतीक हैं,
और जिन्हें इंद्र आदि देवताओं ने पूजित किया है।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां
पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम्।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो सर्वोच्च औषधि हैं,
जो पंचाक्षरी मंत्र (नमः शिवाय) के जाप से प्रसन्न होते हैं,
और जो सृष्टि, पालन, और संहार के कर्ता हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां अतिसुन्दराभ्या-
मत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम्।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो अत्यंत सुंदर हैं,
जो भक्तों के हृदय में बसते हैं,
और जो सभी लोकों का कल्याण करते हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम्।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो कलियुग के पापों का नाश करते हैं,
जो कंकाल रूप में भी कल्याणकारी हैं,
और जो कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां अशुभापहाभ्या-
मशेषलोकैकविशेषिताभ्याम्।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो सभी अशुभताओं को दूर करते हैं,
जो सभी लोकों में विशिष्ट और पूज्य हैं,
और जो अविचल स्मृति और ज्ञान प्रदान करते हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम्।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो रथ में सवार होते हैं,
जिनकी आँखें सूर्य, चंद्रमा और अग्नि के समान हैं,
और जिनके मुख चंद्रमा के समान सुंदर हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम्।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जिनके मस्तक पर जटाएं हैं,
जो बुढ़ापे और मृत्यु से मुक्त हैं,
और जिन्हें विष्णु और ब्रह्मा ने पूजा है।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम्।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जिनकी तीन नेत्र हैं,
जो बिल्व पत्र और मल्लिका की माला से सुशोभित हैं,
जो सौंदर्य और शांति के स्वामी हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम्।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्।
शिव और पार्वती को प्रणाम,
जो सभी प्राणियों के रक्षक हैं,
जिनके हृदय में तीनों लोकों की रक्षा का संकल्प है,
और जिन्हें देवता और असुर सभी पूजते हैं।
मैं शंकर और पार्वती को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुङ्क्ते
शतायुरन्ते शिवलोकमेति।
जो व्यक्ति इस द्वादश (12 श्लोकों) वाले स्तोत्र को
श्रद्धा से दिन में तीन बार पढ़ता है,
वह सभी सौभाग्य फल प्राप्त करता है,
और अंत में शिवलोक जाता है।
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