विघ्नेशं प्रणतोऽस्म्यहं शिवसुतं सिद्धीश्वरं दन्तिनं
गौरीनिर्मितभासमानवपुषं श्वेतार्कमूलस्थितम् ।
सर्वारम्भणपूजितं द्विपमुखं दूर्वासमिज्याप्रियं
मूलाधारनिवासिनं च फणिना बद्धोदरं बुद्धिदम् ॥

श्वेताम्भोरुहवासिनीप्रियमनाः वेधाश्च वेदात्मकः
श्रीकान्तस्स्थितिकारकः स्मरपिता क्षीराब्धिशय्याहितः ।
चन्द्रालङ्कृतमस्तको गिरिजया पृक्तात्मदेहश्शिव-
स्ते लोकत्रयवन्दितास्त्रिपुरुषाः कुर्युर्महन्मङ्गलम् ॥

संसारार्णवतारणोद्यमरताः प्रापञ्चिकानन्दगाः
ज्ञानाब्धिं विभुमाश्रयन्ति चरमे नित्यं सदानन्ददम् ।
आप्रत्यूषविहारिणो गगनगाः नैकाः मनोज्ञाः स्थली-
र्वीक्ष्यान्ते हि निशामुखे वसतरुं गच्छन्ति चन्द्रद्युतौ ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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आपकी वेबसाइट बहुत ही मूल्यवान जानकारी देती है। -यशवंत पटेल

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