केयूरभूषं महनीयरूपं
रत्नाङ्कितं सर्पसुशोभिताङ्गम् ।
सर्वेषु भक्तेषु दयैकदृष्टिं
केदारनाथं भज लिङ्गराजम् ।।
त्रिशूलिनं त्र्यम्बकमादिदेवं
दैतेयदर्पघ्नमुमेशितारम् ।
नन्दिप्रियं नादपितृस्वरूपं
केदारनाथं भज लिङ्गराजम् ।।
कपालिनं कीर्तिविवर्धकं च
कन्दर्पदर्पघ्नमपारकायम्।
जटाधरं सर्वगिरीशदेवं
केदारनाथं भज लिङ्गराजम् ।।
सुरार्चितं सज्जनमानसाब्ज-
दिवाकरं सिद्धसमर्चिताङ्घ्रिं
रुद्राक्षमालं रविकोटिकान्तिं
केदारनाथं भज लिङ्गराजम् ।।
हिमालयाख्ये रमणीयसानौ
रुद्रप्रयागे स्वनिकेतने च ।
गङ्गोद्भवस्थानसमीपदेशे
केदारनाथं भज लिङ्गराजम् ।।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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आपके वेदधारा ग्रुप से मुझे अपार ज्ञान प्राप्त होता है, मुझे गर्व कि मैं सनातनी हूं और सनातन धर्म में ईश्वर ने मुझे भेजा है । आपके द्वारा ग्रुप में पोस्ट किए गए मंत्र और वीडियों को में प्रतिदिन देखता हूं । -Dr Manoj Kumar Saini

वेदधारा का कार्य सराहनीय है, धन्यवाद 🙏 -दिव्यांशी शर्मा

जय सनातन जय सनातनी 🙏 -विकाश ओझा

आपकी वेबसाइट से बहुत सी नई जानकारी मिलती है। -कुणाल गुप्ता

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं उसे देखकर प्रसन्नता हुई। यह सभी के लिए प्रेरणा है....🙏🙏🙏🙏 -वर्षिणी

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