करालास्ये कृपामूले भक्तसर्वार्तिहारिणि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
मुण्डमाले महारौद्रे घनारण्यनिवासिनि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
रात्रिवर्णे रतप्रीते राक्षसान्वयनाशिनि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
कल्याणि कलिदर्पघ्ने कालमातः कलामयि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
कपालपात्रे कामाख्ये कामपीठनिवासिनि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
भयोत्पादककीटादिजीविनाशनतत्परे ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
गुणाधारे जये श्रेष्ठे भद्रकालि मनोमये ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
रक्षःकुलान्तके राजवरदे भीतिनाशिनि ।
कालिके किं करिष्यामि भक्तोऽहं त्वत्कृपां विना ।।
कालिकाष्टकमेतद्यः पठेद्भक्त्या पुमान् मुहुः ।
कालिकायाः कृपां प्राप्य सन्तुष्टो भवति ध्रुवम् ।।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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भारतीय संस्कृति व समाज के लिए जरूरी है। -Ramnaresh dhankar

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