अस्य श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः,

अनुष्टुप्छन्दः, श्रीऋणमोचक महागणपतिर्देवता ।

मम ऋणमोचनमहागणपतिप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का ऋषि शुक्राचार्य हैं, छंद अनुष्टुप है और देवता ऋणमोचन महागणपति हैं। यह जप ऋणमोचन महागणपति के प्रसाद की सिद्धि के लिए किया जाता है।

रक्ताङ्गं रक्तवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं रक्तगन्धैः

क्षीराब्धौ रत्नपीठे सुरतरुविमले रत्नसिंहासनस्थम् ।

दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधरमतुलं चन्द्रमौलिं त्रिणेत्रं

ध्यायेत् शान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ॥

जो गणपति रक्तवर्ण के हैं, रक्तवस्त्र धारण किए हुए हैं, सफेद फूलों से पूजित हैं, और रक्तगंध से सुगंधित हैं। जो क्षीरसागर में रत्न के पीठ पर, स्वच्छ सुरतरु के नीचे, रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं। जिनके चार हाथ हैं, जो पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, जिनके सिर पर चंद्रमा है, तीन नेत्र हैं, और जो शांति के लिए ध्यान करने योग्य हैं। उस अमल और प्रसन्न गणपति को मैं ध्यान करता हूँ।

स्मरामि देव देवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।

षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये ॥ १॥

मैं उस देवताओं के देव, वक्रतुण्ड, महाबलवान, षडक्षर (ॐ गं गणपतये नमः) और कृपासागर गणपति को स्मरण करता हूँ और ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

एकाक्षरं ह्येकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम् ।

एकमेवाद्वितीयं च नमामि ऋणमुक्तये ॥ २॥

एकाक्षर, एकदन्त, एकमात्र ब्रह्म, सनातन और अद्वितीय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

महागणपतिं देवं महासत्वं महाबलम् ।

महाविघ्नहरं शम्भोः नमामि ऋणमुक्तये ॥ ३॥

महागणपति, महात्मा, महाबलवान, और महाविघ्नहरणकर्ता शंभो के प्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम् ।

कृष्णसर्पोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये ॥ ४॥

कृष्णवर्ण, कृष्णवस्त्र धारण किए हुए, कृष्णगंध से अभिषिक्त, और कृष्ण सर्प का उपवीत धारण करने वाले गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम् ।

रक्तपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ५॥

रक्तवस्त्र, रक्तवर्ण, रक्तगंध से अभिषिक्त, और रक्तपुष्पप्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम् ।

पीतपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ६॥

पीतवस्त्र, पीतवर्ण, पीतगंध से अभिषिक्त, और पीतपुष्पप्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

धूम्राम्बरं धूम्रवर्णं धूम्रगन्धानुलेपनम् ।

होम धूमप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ७॥

धूम्रवस्त्र, धूम्रवर्ण, धूम्रगंध से अभिषिक्त, और होम के धूम्र को प्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

भालनेत्रं भालचन्द्रं पाशाङ्कुशधरं विभुम् ।

चामरालङ्कृतं देवं नमामि ऋणमुक्तये ॥ ८॥

भालनेत्र, भालचन्द्र, पाश और अंकुश धारण करने वाले, और चामर से अलंकृत गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।

इदं त्वृणहरं स्तोत्रं सन्ध्यायां यः पठेन्नरः ।

षण्मासाभ्यन्तरेणैव ऋणमुक्तो भविष्यति ॥ ९॥

जो व्यक्ति इस ऋणहरण स्तोत्र को संध्या समय में पढ़ता है, वह छह महीनों के भीतर ऋणमुक्त हो जाएगा।

गणेशजी की विशेषताएँ

इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र में भगवान गणेश की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। गणेशजी रक्तवर्ण, पीतवर्ण, कृष्णवर्ण और धूम्रवर्ण के रूपों में वर्णित हैं, जो विभिन्न प्रकार की वस्त्र और गंध से अलंकृत होते हैं। वे पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, उनके चार हाथ हैं और माथे पर तीसरा नेत्र तथा चंद्रमा सुशोभित है। गणेशजी रत्नसिंहासन पर विराजमान होते हैं और शांति, प्रसन्नता और पवित्रता के प्रतीक हैं। इस स्तोत्र में गणेशजी को वक्रतुण्ड, महाबलवान, कृपासागर, एकदन्त, सनातन और अद्वितीय ब्रह्म के रूप में भी पूजा गया है। गणेशजी महाविघ्नहरणकर्ता हैं और सभी प्रकार के विघ्नों को हरने की शक्ति रखते हैं।

ऋण से मुक्ति

यह ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र विभिन्न प्रकार के ऋणों से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। इसे संध्या समय में नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति छह महीनों के भीतर ऋणमुक्त हो सकता है। इस स्तोत्र के प्रभाव से आर्थिक ऋण, व्यापारिक ऋण, व्यक्तिगत ऋण, पारिवारिक ऋण और मानसिक ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र उन सभी बाधाओं को दूर करता है जो व्यक्ति के जीवन में ऋण की स्थिति उत्पन्न करती हैं और उसे समृद्धि, शांति और संतोष की ओर अग्रसर करता है। गणेशजी की कृपा से व्यक्ति के सभी प्रकार के ऋण समाप्त हो जाते हैं और वह निःशंक, निःकंटक जीवन जीने की स्थिति में आ जाता है।

प्रार्थना:

हे विघ्नहर्ता गणेशजी, आपके श्रीचरणों में मेरा कोटि-कोटि नमन। आप जो रक्तवर्ण, पीतवर्ण, कृष्णवर्ण और धूम्रवर्ण के रूपों में सुशोभित होते हैं, आप जो पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, आपके चार हाथ और माथे पर तीसरा नेत्र तथा चंद्रमा सुशोभित हैं, आप ही मेरे जीवन के सभी विघ्नों और कष्टों को दूर कर सकते हैं। आप जो कृपासागर हैं, महाबलवान हैं, सनातन ब्रह्म हैं, अद्वितीय और एकदन्त हैं, मैं आपके चरणों में समर्पित हूँ।

हे महागणपति, मैं आपके स्तोत्र को श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ता हूँ। आपके रक्तवस्त्र और रक्तगंध से सुशोभित स्वरूप का ध्यान करता हूँ। आप जो रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं, शांति और प्रसन्नता के प्रतीक हैं, आपकी कृपा से मुझे भी शांति और समृद्धि प्राप्त हो। हे गणपति, मैं आपके वक्रतुण्ड और महाबल का स्मरण करता हूँ। आप सभी प्रकार के विघ्नों को हरने वाले हैं, आपकी कृपा से मेरे जीवन के सभी ऋणों का नाश हो।

हे कृपानिधि गणेशजी, आपके इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ करने से मेरी आर्थिक समस्याएँ, व्यापारिक कठिनाइयाँ, व्यक्तिगत समस्याएँ, पारिवारिक विवाद और मानसिक तनाव सभी दूर हो जाएँ। आपकी दिव्य कृपा से मेरे सभी ऋण समाप्त हो जाएँ और मैं निःशंक और निःकंटक जीवन जी सकूँ।

हे गणपति बाप्पा, मैं आपकी शरण में हूँ, कृपया मुझे अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करें। आपकी दिव्य शक्ति और कृपा से मेरे जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ और ऋण समाप्त हो जाएँ। हे गणेशजी, आपकी आराधना से मेरी समृद्धि, शांति और संतोष की प्राप्ति हो।

हे गणेशजी, मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार करें और मुझे ऋणमुक्ति का वरदान प्रदान करें। आपके चरणों में ही मेरा समर्पण और शरण है। ॐ गणपतये नमः।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा का कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है 🙏 -आकृति जैन

आपको धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद -Ghanshyam Thakar

वेदधारा ने मेरे जीवन में बहुत सकारात्मकता और शांति लाई है। सच में आभारी हूँ! 🙏🏻 -Pratik Shinde

Ye sanatani ke dharohar hai. Every Hindu should know our legacy. -Manoranjan Panda

अद्वितीय website -श्रेया प्रजापति

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