इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का ऋषि शुक्राचार्य हैं, छंद अनुष्टुप है और देवता ऋणमोचन महागणपति हैं। यह जप ऋणमोचन महागणपति के प्रसाद की सिद्धि के लिए किया जाता है।
जो गणपति रक्तवर्ण के हैं, रक्तवस्त्र धारण किए हुए हैं, सफेद फूलों से पूजित हैं, और रक्तगंध से सुगंधित हैं। जो क्षीरसागर में रत्न के पीठ पर, स्वच्छ सुरतरु के नीचे, रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं। जिनके चार हाथ हैं, जो पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, जिनके सिर पर चंद्रमा है, तीन नेत्र हैं, और जो शांति के लिए ध्यान करने योग्य हैं। उस अमल और प्रसन्न गणपति को मैं ध्यान करता हूँ।
मैं उस देवताओं के देव, वक्रतुण्ड, महाबलवान, षडक्षर (ॐ गं गणपतये नमः) और कृपासागर गणपति को स्मरण करता हूँ और ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
एकाक्षर, एकदन्त, एकमात्र ब्रह्म, सनातन और अद्वितीय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
महागणपति, महात्मा, महाबलवान, और महाविघ्नहरणकर्ता शंभो के प्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
कृष्णवर्ण, कृष्णवस्त्र धारण किए हुए, कृष्णगंध से अभिषिक्त, और कृष्ण सर्प का उपवीत धारण करने वाले गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
रक्तवस्त्र, रक्तवर्ण, रक्तगंध से अभिषिक्त, और रक्तपुष्पप्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
पीतवस्त्र, पीतवर्ण, पीतगंध से अभिषिक्त, और पीतपुष्पप्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
धूम्रवस्त्र, धूम्रवर्ण, धूम्रगंध से अभिषिक्त, और होम के धूम्र को प्रिय गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
भालनेत्र, भालचन्द्र, पाश और अंकुश धारण करने वाले, और चामर से अलंकृत गणपति को ऋणमुक्ति के लिए नमन करता हूँ।
जो व्यक्ति इस ऋणहरण स्तोत्र को संध्या समय में पढ़ता है, वह छह महीनों के भीतर ऋणमुक्त हो जाएगा।
इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र में भगवान गणेश की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। गणेशजी रक्तवर्ण, पीतवर्ण, कृष्णवर्ण और धूम्रवर्ण के रूपों में वर्णित हैं, जो विभिन्न प्रकार की वस्त्र और गंध से अलंकृत होते हैं। वे पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, उनके चार हाथ हैं और माथे पर तीसरा नेत्र तथा चंद्रमा सुशोभित है। गणेशजी रत्नसिंहासन पर विराजमान होते हैं और शांति, प्रसन्नता और पवित्रता के प्रतीक हैं। इस स्तोत्र में गणेशजी को वक्रतुण्ड, महाबलवान, कृपासागर, एकदन्त, सनातन और अद्वितीय ब्रह्म के रूप में भी पूजा गया है। गणेशजी महाविघ्नहरणकर्ता हैं और सभी प्रकार के विघ्नों को हरने की शक्ति रखते हैं।
यह ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र विभिन्न प्रकार के ऋणों से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। इसे संध्या समय में नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति छह महीनों के भीतर ऋणमुक्त हो सकता है। इस स्तोत्र के प्रभाव से आर्थिक ऋण, व्यापारिक ऋण, व्यक्तिगत ऋण, पारिवारिक ऋण और मानसिक ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र उन सभी बाधाओं को दूर करता है जो व्यक्ति के जीवन में ऋण की स्थिति उत्पन्न करती हैं और उसे समृद्धि, शांति और संतोष की ओर अग्रसर करता है। गणेशजी की कृपा से व्यक्ति के सभी प्रकार के ऋण समाप्त हो जाते हैं और वह निःशंक, निःकंटक जीवन जीने की स्थिति में आ जाता है।
प्रार्थना:
हे विघ्नहर्ता गणेशजी, आपके श्रीचरणों में मेरा कोटि-कोटि नमन। आप जो रक्तवर्ण, पीतवर्ण, कृष्णवर्ण और धूम्रवर्ण के रूपों में सुशोभित होते हैं, आप जो पाश, अंकुश, वरमुद्रा और अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं, आपके चार हाथ और माथे पर तीसरा नेत्र तथा चंद्रमा सुशोभित हैं, आप ही मेरे जीवन के सभी विघ्नों और कष्टों को दूर कर सकते हैं। आप जो कृपासागर हैं, महाबलवान हैं, सनातन ब्रह्म हैं, अद्वितीय और एकदन्त हैं, मैं आपके चरणों में समर्पित हूँ।
हे महागणपति, मैं आपके स्तोत्र को श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ता हूँ। आपके रक्तवस्त्र और रक्तगंध से सुशोभित स्वरूप का ध्यान करता हूँ। आप जो रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं, शांति और प्रसन्नता के प्रतीक हैं, आपकी कृपा से मुझे भी शांति और समृद्धि प्राप्त हो। हे गणपति, मैं आपके वक्रतुण्ड और महाबल का स्मरण करता हूँ। आप सभी प्रकार के विघ्नों को हरने वाले हैं, आपकी कृपा से मेरे जीवन के सभी ऋणों का नाश हो।
हे कृपानिधि गणेशजी, आपके इस ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र का पाठ करने से मेरी आर्थिक समस्याएँ, व्यापारिक कठिनाइयाँ, व्यक्तिगत समस्याएँ, पारिवारिक विवाद और मानसिक तनाव सभी दूर हो जाएँ। आपकी दिव्य कृपा से मेरे सभी ऋण समाप्त हो जाएँ और मैं निःशंक और निःकंटक जीवन जी सकूँ।
हे गणपति बाप्पा, मैं आपकी शरण में हूँ, कृपया मुझे अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करें। आपकी दिव्य शक्ति और कृपा से मेरे जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ और ऋण समाप्त हो जाएँ। हे गणेशजी, आपकी आराधना से मेरी समृद्धि, शांति और संतोष की प्राप्ति हो।
हे गणेशजी, मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार करें और मुझे ऋणमुक्ति का वरदान प्रदान करें। आपके चरणों में ही मेरा समर्पण और शरण है। ॐ गणपतये नमः।