द्विरदवदन विषमरद वरद जयेशान शान्तवरसदन ।
सदनवसादन सादनमन्तरायस्य रायस्य ॥

इन्दुकल कलितालिक सालिकशुम्भत्कपोलपालियुग ।
विकटस्फुटकटधाराधारोऽस्य प्रपञ्चस्य ॥

परपरशुपाणिपाणे पणितपणायेः पणायितोऽसि यतः ।
आरूह्य वज्रदन्तं विदधासि विपदन्तम् ॥

लम्बोदर दूर्वासन शयधृतसामोदमोदकाशनक ।
शनकैरवलोकय मां यमान्तरायापहारिदृशा ॥

आनन्दतुन्दिलाखिलवृन्दारकवृन्दवन्दिताङ् घ्रियुग ।
सराप्रदण्डरसालो नागजभालोऽतिभासि विभो ॥

अगणेयगुणेशात्मज चिन्तकचिन्तामणे गणेशान ।
स्वचरणशरणं करुणावरुणालय पाहि मां दीनम् ॥

कचिरवचोऽमृतरावोन्नीता नीता दिवस्तुतिः स्फीता ।
इति षट्पदी मदीया गणपतिपादाम्भुजे विशतु ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा समाज के लिए एक महान सेवा है -शिवांग दत्ता

वेदधारा के साथ ऐसे नेक काम का समर्थन करने पर गर्व है - अंकुश सैनी

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