प्रातः स्मरामि रमया सह वेङ्कटेशं
मन्दस्मितं मुखसरोरुहकान्तिरम्यम् ।
माणिक्यकान्तिविलसन्मुकुटोर्ध्वपुण्ड्रं
पद्माक्षलक्षमणिकुण्डलमण्डिताङ्गम् ॥
प्रातर्भजामि कररम्यसुशङ्खचक्रं
भक्ताभयप्रदकटिस्थलदत्तपाणिम् ।
श्रीवत्सकौस्तुभलसन्मणिकाञ्चनाढ्यं
पीताम्बरं मदनकोटिसुमोहनाङ्गम् ॥
प्रातर्नमामि परमात्मपदारविन्दं
आनन्दसान्द्रनिलयं मणिनूपुराढ्यम् ।
एतत् समस्तजगतामपि दर्शयन्तं
वैकुण्ठमत्र भजतां करपल्लवेन ॥
व्यासराजयतिप्रोक्तं श्लोकत्रयमिदं शुभम् ।
प्रातःकाले पठेद्यस्तु पापेभ्यो मुच्यते नरः ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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