श्रीमत्कैरातवेषोद्भटरुचिरतनो भक्तरक्षात्तदीक्ष
प्रोच्चण्टारातिदृप्तद्विपनिकरसमुत्सारहर्यक्षवर्य ।
त्वत्पादैकाश्रयोऽहं निरुपमकरूणावारिधे भूरितप्त-
स्त्वामद्यैकाग्रभक्त्या गिरिशसुत विभो स्तौमि देव प्रसीद ॥

पार्थः प्रत्यर्थिवर्गप्रशमनविधये दिव्यमुग्रं महास्त्रं
लिप्सुध्र्यायन् महेशं व्यतनुत विविधानीष्टसिध्यै तपांसि ।
दित्सुः कामानमुष्मै शबरवपुरभूत् प्रीयमाणः पिनाकी
तत्पुत्रात्माऽविरासीस्तदनु च भगवन् विश्वसंरक्षणाय ॥

घोरारण्ये हिमाद्रौ विहरसि मृगयातत्परश्चापधारी
देव श्रीकण्ठसूनो विशिखविकिरणैः श्वापदानाशु निघ्नन् ।
एवं भक्तान्तरङ्गेष्वपि विविधभयोद्भ्रान्तचेतोविकारान्
धीरस्मेरार्द्रवीक्षानिकरविसरणैश्चापि कारुण्यसिन्धो ॥

विक्रान्तैरुग्रभावैः प्रतिभटनिवहैः सन्निरुद्धाः समन्ता-
दाक्रान्ताः क्षत्रमुख्याः शबरसुत भवद्ध्यानमग्नान्तरङ्गाः ।
लब्ध्वा तेजस्त्रिलोकीविजयपटुसस्तारिवंशप्ररोहान्
दग्ध्वाऽसन् पूर्णकामाः प्रदिशतु स भवान् मह्रमापद्विमोक्षम् ॥

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

वेद धारा समाज के लिए एक महान सीख औऱ मार्गदर्शन है -Manjulata srivastava

वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

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