देहेन्द्रियैर्विना जीवान् जडतुल्यान् विलोक्य हि।
जगतः सर्जकं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
अन्तर्बहिश्च संव्याप्य सर्जनानन्तरं किल।
जगतः पालकं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
जीवांश्च व्यथितान् दृष्ट्वा तेषां हि कर्मजालतः।
जगत्संहारकं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
सर्जकं पद्मयोनेश्च वेदप्रदायकं तथा।
शास्त्रयोनिमहं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
विभूतिद्वयनाथं च दिव्यदेहगुणं तथा।
आनन्दाम्बुनिधिं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
सर्वविदं च सर्वेशं सर्वकर्मफलप्रदम्।
सर्वश्रुत्यन्वितं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
चिदचिद्द्वारकं सर्वजगन्मूलमथाव्ययम्।
सर्वशक्तिमहं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
प्रभाणां सूर्यवच्चाथ विशेषाणां विशिष्टवत्।
जीवानामंशिनं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
अशेषचिदचिद्वस्तुवपुष्फं सत्यसङ्गरम्।
सर्वेषां शेषिणं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।
सकृत्प्रपत्तिमात्रेण देहिनां दैन्यशालिनाम्।
सर्वेभ्योऽभयदं वन्दे श्रीरामं हनुमत्प्रभुम्।

 

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आप जो अच्छा काम कर रहे हैं उसे जानकर बहुत खुशी हुई -राजेश कुमार अग्रवाल

आपकी वेबसाइट बहुत ही अद्भुत और जानकारीपूर्ण है।✨ -अनुष्का शर्मा

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आपका प्रयास सराहनीय है,आप सनातन संस्कृति को उन्नति के शिखर पर ले जा रहे हो हमारे जैसे अज्ञानी भी आप के माध्यम से इन दिव्य श्लोकों का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक बनाने में लगे हैं🙏🙏🙏 -User_soza7d

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