सहस्रचन्द्रनित्दकातिकान्तचन्द्रिकाचयै-
दिशोऽभिपूरयद् विदूरयद् दुराग्रहं कलेः।
कृतामलाऽवलाकलेवरं वरं भजामहे
महेशमानसाश्रयन्वहो महो महोदयम्।
विशालशैलकन्दरान्तरालवासशालिनीं
त्रिलोकपालिनीं कपालिनी मनोरमामिमाम्।
उमामुपासितां सुरैरूपास्महे महेश्वरीं
परां गणेश्वरप्रसू नगेश्वरस्य नन्दिनीम्।
अये महेशि ते महेन्द्रमुख्यनिर्जराः समे
समानयन्ति मूर्द्धरागत परागमङ्घ्रिजम्।
महाविरागिशङ्कराऽनुरागिणीं नुरागिणी
स्मरामि चेतसाऽतसीमुमामवाससं नुताम्।
भजेऽमराङ्गनाकरोच्छलत्सुचामरोच्चलन्
निचोललोलकुन्तलां स्वलोकशोकनाशिनीम्।
अदभ्रसम्भृतातिसम्भ्रमप्रभूतविभ्रम-
प्रवृत्तताण्डवप्रकाण्डपण्डितीकृतेश्वराम्।
अपीह पामरं विधाय चामरं तथाऽमरं
नु पामरं परेशिदृग्विभावितावितत्रिके।
प्रवर्तते प्रतोषरोषखेलन तव स्वदोष-
मोषहेतवे समृद्धिमेलनं पदन्नुमः।
भभूव्भभव्भभव्भभाभितोविभासि भास्वर-
प्रभाभरप्रभासितागगह्वराधिभासिनीम्।
मिलत्तरज्वलत्तरोद्वलत्तरक्षपाकर
प्रमूतभाभरप्रभासिभालपट्टिकां भजे।
कपोतकम्बुकाम्यकण्ठकण्ठयकङ्कणाङ्गदा-
दिकान्तकाश्चिकाश्चितां कपालिकामिनीमहम्।
वराङ्घ्रिनूपुरध्वनिप्रवृत्तिसम्भवद् विशेष-
काव्यकल्पकौशलां कपालकुण्डलां भजे।
भवाभयप्रभावितद्भवोत्तरप्रभाविभव्य-
भूमिभूतिभावन प्रभूतिभावुकं भवे।
भवानि नेति ते भवानि पादपङ्कजं भजे
भवन्ति तत्र शत्रुवो न यत्र तद्विभावनम्।
दुर्गाग्रतोऽतिगरिमप्रभवां भवान्या
भव्यामिमां स्तुतिमुमापतिना प्रणीताम्।
यः श्रावयेत् सपुरूहूतपुराधिपत्य
भाग्यं लभेत रिपवश्च तृणानि तस्य।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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