ध्वान्तदन्तिकेसरी हिरण्यकान्तिभासुरः
कोटिरश्मिभूषितस्तमोहरोऽमितद्युतिः।
वासरेश्वरो दिवाकरः प्रभाकरः खगो
भास्करः सदैव पातु मां विभावसू रविः।
यक्षसिद्धकिन्नरादिदेवयोनिसेवितं
तापसैर्मुनीश्वरैश्च नित्यमेव वन्दितम्।
तप्तकाञ्चनाभमर्कमादिदैवतं रविं
विश्वचक्षुषं नमामि सादरं महाद्युतिम्।
भानुना वसुन्धरा पुरैव निमिता तथा
भास्करेण तेजसा सदैव पालिता मही।
भूर्विलीनतां प्रयाति काश्यपेयवर्चसा
तं रवि भजाम्यहं सदैव भक्तिचेतसा।
अंशुमालिने तथा च सप्त-सप्तये नमो
बुद्धिदायकाय शक्तिदायकाय ते नमः।
अक्षराय दिव्यचक्षुषेऽमृताय ते नमः
शङ्खचक्रभूषणाय विष्णुरूपिणे नमः।
भानवीयभानुभिर्नभस्तलं प्रकाशते
भास्करस्य तेजसा निसर्ग एष वर्धते।
भास्करस्य भा सदैव मोदमातनोत्यसौ
भास्करस्य दिव्यदीप्तये सदा नमो नमः।
अन्धकार-नाशकोऽसि रोगनाशकस्तथा
भो ममापि नाशयाशु देहचित्तदोषताम्।
पापदुःखदैन्यहारिणं नमामि भास्करं
शक्तिधैर्यबुद्धिमोददायकाय ते नमः।
भास्करं दयार्णवं मरीचिमन्तमीश्वरं
लोकरक्षणाय नित्यमुद्यतं तमोहरम्।
चक्रवाकयुग्मयोगकारिणं जगत्पतिं
पद्मिनीमुखारविन्दकान्तिवर्धनं भजे।
सप्तसप्तिसप्तकं सदैव यः पठेन्नरो
भक्तियुक्तचेतसा हृदि स्मरन् दिवाकरम्।
अज्ञतातमो विनाश्य तस्य वासरेश्वरो
नीरुजं तथा च तं करोत्यसौ रविः सदा।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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