subramanya ashtakam

हे स्वामिनाथ करुणाकर दीनबन्धो
श्रीपार्वतीशमुखपङ्कजपद्मबन्धो।
श्रीशादिदेवगणपूजितपादपद्म
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
देवादिदेवसुत देवगणाधिनाथ
देवेन्द्रवन्द्य मृदुपङ्कजमञ्जुपाद ।
देवर्षिनारदमुनीन्द्रसुगीतकीर्ते
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
नित्यान्नरदाननिरताखिलरोगहारिन्‌
तस्मात्प्रदानपरिपूरितभक्तकाम।
श्रुत्यागमप्रणववाच्यनिजस्वरूप
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
क्रौञ्चासुरेन्द्रपरिखण्डनशक्तिशूल-
चापादिशस्त्रपरिमण्डितदिव्यपाणे।
श्रीकुण्डलीशधरतुण्डशिखीन्द्रवाह
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
देवादिदेव रथमण्डलमध्यवेद्य
देवेन्द्रपीडनकरं दृढचापहस्तम्‌।
शूरं निहत्य सुरकोटिभिरीड्यमान
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
हीरादिरत्नमणियुक्तकिरीटहार
केयूरकुण्डललसत्कवचाभिरामम्‌।
हे वीर तारक जयाऽमरवृन्दवन्द्य
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
पञ्चाक्षरादिमनुमन्त्रितगाङ्गतोयैः
पञ्चामृतैः प्रमुदितेन्द्रमुखैर्मुनीन्द्रैः ।
पट्टाभिषिक्त हरियुक्त परासनाथ
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
श्रीकार्तिकेय करुणामृतपूर्णदृष्ट्या
कामादिरोगकलुषीकृतदुष्टचित्तम्‌ ।
सिक्त्वा तु मामव कलाधर कान्तिकान्त्या
वल्लीशनाथ मम देहि करावलम्बम्।
सुब्रह्मण्याष्टकं पुण्यं ये पठन्ति द्विजोत्तमाः।
ते सर्वे मुक्तिमायन्ति सुब्रह्मण्यप्रसादतः।
सुब्रह्मण्याष्टकमिदं प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌।
कोटिजन्मकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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