अस्य श्रीबुधकवचस्तोत्रमन्त्रस्य। कश्यप ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। बुधो देवता। बुधप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
बुधस्तु पुस्तकधरः कुङ्कुमस्य समद्युतिः।
पीताम्बरधरः पातु पीतमाल्यानुलेपनः।
कटिं च पातु मे सौम्यः शिरोदेशं बुधस्तथा।
नेत्रे ज्ञानमयः पातु श्रोत्रे पातु निशाप्रियः।
घ्राणं गन्धप्रियः पातु जिह्वां विद्याप्रदो मम।
कण्ठं पातु विधोः पुत्रो भुजौ पुस्तकभूषणः।
वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं रोहिणीसुतः।
नाभिं पातु सुराराध्यो मध्यं पातु खगेश्वरः।
जानुनी रौहिणेयश्च पातु जङ्घेऽखिलप्रदः।
पादौ मे बोधनः पातु पातु सौम्योऽखिलं वपुः।
एतद्धि कवचं दिव्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वदुःखनिवारणम्।
आयुरारोग्यशुभदं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम्।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत्

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा ने मेरे जीवन में बहुत सकारात्मकता और शांति लाई है। सच में आभारी हूँ! 🙏🏻 -Pratik Shinde

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