अस्य श्रीचन्द्रकवचस्तोत्रमन्त्रस्य। गौतम् ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। श्रीचन्द्रो देवता। चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम्।
वासुदेवस्य नयनं शङ्करस्य च भूषणम्।
एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम्।
शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः।
चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः।
प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबान्धवः।
पातु कण्ठं च मे सोमः स्कन्धे जैवातृकस्तथा।
करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः।
हृदयं पातु मे चन्द्रो नाभिं शङ्करभूषणः।
मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः।
ऊरू तारापतिः पातु मृगाङ्को जानुनी सदा।
अब्धिजः पातु मे जङ्घे पातु पादौ विधुः सदा।
सर्वाण्यन्यानि चाङ्गानि पातु चन्दूऽखिलं वपुः।
एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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