जीवेशविश्वसुरयक्षनृराक्षसाद्याः
यस्मिंस्थिताश्च खलु येन विचेष्टिताश्च।
यस्मात्परं न च तथाऽपरमस्ति किञ्चित्
कल्पेश्वरं भवभयार्तिहरं प्रपद्ये।
यं निष्क्रियो विगतमायविभुः परेशः
नित्यो विकाररहितो निजविर्विकल्पः।
एकोऽद्वितीय इति यच्छ्रुतया ब्रुवन्ति
कल्पेश्वरं भवभयार्तिहरं प्रपद्ये।
कल्पद्रुमं प्रणतभक्तहृदन्धकारं
मायाविलासमखिलं विनिवर्तयन्तम्।
चित्सूर्यरूपममलं निजमात्मरूपं
कल्पेश्वरं भवभयार्तिहरं प्रपद्ये।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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