परिधीकृतपूर्ण- जगत्त्रितय-
प्रभवामलपद्मदिनेश युगे।
श्रुतिसागर- तत्त्वविशालनिधे
गणनायक भोः परिपालय माम्।
स्मरदर्पविनाशित- पादनखा-
ग्र समग्रभवाम्बुधि- पालक हे।
सकलागममग्न- बृहज्जलधे
गणनायक भोः परिपालय माम्।
रुचिरादिममाक्षिक- शोभित सु-
प्रियमोदकहस्त शरण्यगते।
जगदेकसुपार- विधानविधे
गणनायक भोः परिपालय माम्।
सुरसागरतीरग- पङ्कभव-
स्थितनन्दन- संस्तुतलोकपते।
कृपणैकदया- परभागवते
गणनायक भोः परिपालय माम्।
सुरचित्तमनोहर- शुभ्रमुख-
प्रखरोर्जित- सुस्मितदेवसखे।
गजमुख्य गजासुरमर्दक हे
गणनायक भोः परिपालय माम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा की सेवा समाज के लिए अद्वितीय है 🙏 -योगेश प्रजापति

हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

आप लोग वैदिक गुरुकुलों का समर्थन करके हिंदू धर्म के पुनरुद्धार के लिए महान कार्य कर रहे हैं -साहिल वर्मा

Hamen isase bahut jankari milti hai aur mujhe mantron ki bhi jankari milti hai -User_spaavj

इस परोपकारी कार्य में वेदधारा का समर्थन करते हुए खुशी हो रही है -Ramandeep

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