ओमित्यशेषविबुधाः शिरसा यदाज्ञां
सम्बिभ्रते सुममयीमिव नव्यमालाम्।
ओङ्कारजापरतलभ्यपदाब्ज स त्वं
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
नम्रालिहृत्तिमिरचण्डमयूखमालिन्
कम्रस्मितापहृतकुन्दसुधांशुदर्प।
सम्राट यदीयदयया प्रभवेद्दरिद्रः
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
मस्ते दुरक्षरततिर्लिखिता विधात्रा
जागर्तु साध्वसलवोऽपि न मेऽस्ति तस्याः।
लुम्पामि ते करुणया करुणाम्बुधे तां
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
शम्पालतासदृशभास्वरदेहयुक्त
सम्पादयाम्यखिलशास्त्रधियं कदा वा।
शङ्कानिवारणपटो नमतां नराणां
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
कन्दर्पदर्पदलनं कितवैरगम्यं
कारुण्यजन्मभवनं कृतसर्वरक्षम्।
कीनाशभीतिहरणं श्रितवानहं त्वां
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
राकासुधाकरसमानमुखप्रसर्प-
द्वेदान्तवाक्यसुधया भवतापतप्तम्।
संसिच्य मां करुणया गुरुराज शीघ्रं
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
यत्नं विना मधुसुधासुरदीर्घिकाव-
धीरिण्य आशु वृणते स्वयमेव वाचः।
तं त्वत्पदाब्जयुगलं बिभृते हृदा यः
श्रीशङ्करार्य मम देहि करावलम्बम्|
विक्रीता मधुना निजा मधुरता दत्ता मुदा द्राक्षया
क्षीरैः पात्रधियाऽर्पिता युधि जिताल्लब्धा बलादिक्षुतः।
न्यस्ता चोरभयेन हन्त सुधया यस्मादतस्तद्गिरां
माधुर्यस्य समृद्धिरद्भुततरा नान्यत्र सा वीक्ष्यते।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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Yeah website hamare liye to bahut acchi hai Sanatan Dharm ke liye ek Dharm ka kam kar rahi hai -User_sn0rcv

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