यं ध्यायसे स क्व तवास्ति देव इत्युक्त ऊचे पितरं सशस्त्रम्।
प्रह्लाद आस्तेऽखिलगो हरिः स लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
तदा पदाताडयदादिदैत्यः स्तम्भो ततोऽह्नाय घुरूरुशब्दम्।
चकार यो लोकभयङ्करं स लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
स्तम्भं विनिर्भिद्य विनिर्गतो यो भयङ्कराकार उदस्तमेघः।
जटानिपातैः स च तुङ्गकर्णो लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
पञ्चाननास्यो मनुजाकृतिर्यो भयङ्करस्तीक्ष्णनखायुधोऽरिम्।
धृत्वा निजोर्वोर्विददार सोऽसौ लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
वरप्रदोक्तेरविरोधतोऽरिं जघान भृत्योक्तमृतं हि कुर्वन्।
स्रग्वत्तदन्त्रं निदधौ स्वकण्ठे लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
विचित्रदेहोऽपि विचित्रकर्मा विचित्रशक्तिः स च केसरीह।
पापं च तापं विनिवार्य दुःखं लक्ष्मीनृसिंहोऽवतु मां समन्तात्।
प्रह्लादः कृतकृत्योऽभूद्यत्कृपालेशतोऽमराः।
निष्कण्टकं स्वधामापुः श्रीनृसिंहः स पाति माम्।
दंष्ट्राकरालवदनो रिपूणां भयकृद्भयम्।
इष्टदो हरति स्वस्य वासुदेवः स पातु माम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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आपकी वेबसाइट बहुत ही अनोखी और ज्ञानवर्धक है। 🌈 -श्वेता वर्मा

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