स्वैनोवृन्दापहृदिह मुदा वारिताशेषखेदा
शीघ्रं मन्दानपि खलु सदा याऽनुगृह्णात्यभेदा।
कृष्णावेणी सरिदभयदा सच्चिदानन्दकन्दा
पूर्णानन्दामृतसुपददा पातु सा नो यशोदा।
स्वर्निश्रेणिर्या वराभीतिपाणिः
पापश्रेणीहारिणी या पुराणी।
कृष्णावेणी सिन्धुरव्यात्कमूर्तिः
सा हृद्वाणीसृत्यतीताऽच्छकीर्तिः।
कृष्णासिन्धो दुर्गतानाथबन्धो
मां पङ्काधोराशु कारुण्यसिन्धो।
उद्धृत्याधो यान्तमन्त्रास्तबन्धो
मायासिन्धोस्तारय त्रातसाधो।
स्मारं स्मारं तेऽम्ब माहात्म्यमिष्टं
जल्पं जल्पं ते यशो नष्टकष्टम्।
भ्रामं भ्रामं ते तटे वर्त आर्ये
मज्जं मज्जं तेऽमृते सिन्धुवर्ये।
श्रीकृष्णे त्वं सर्वपापापहन्त्री
श्रेयोदात्री सर्वतापापहर्त्री।
भर्त्री स्वेषां पाहि षड्वैरिभीते-
र्मां सद्गीते त्राहि संसारभीतेः।
कृष्णे साक्षात्कृष्णमूर्तिस्त्वमेव
कृष्णे साक्षात्त्वं परं तत्त्वमेव।
भावग्राह्रे मे प्रसीदाधिहन्त्रि
त्राहि त्राहि प्राज्ञि मोक्षप्रदात्रि।
हरिहरदूता यत्र प्रेतोन्नेतुं निजं निजं लोकम्।
कलहायन्तेऽन्योन्यं सा नो हरतूभयात्मिका शोकम्।
विभिद्यते प्रत्ययतोऽपि रूपमेकप्रकृत्योर्न हरेर्हरस्य।
भिदेति या दर्शयितुं गतैक्यं वेण्याऽजतन्वाऽजतनुर्हि कृष्णा।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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