मुखे चारुहासं करे शङ्खचक्रं गले रत्नमालां स्वयं मेघवर्णम्।
तथा दिव्यशस्त्रं प्रियं पीतवस्त्रं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
सदाभीतिहस्तं मुदाजानुपाणिं लसन्मेखलं रत्नशोभाप्रकाशम्।
जगत्पादपद्मं महत्पद्मनाभं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
अहो निर्मलं नित्यमाकाशरूपं जगत्कारणं सर्ववेदान्तवेद्यम्।
विभुं तापसं सच्चिदानन्दरूपं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
श्रिया विष्टितं वामपक्षप्रकाशं सुरैर्वन्दितं ब्रह्मरुद्रस्तुतं तम्।
शिवं शङ्करं स्वस्तिनिर्वाणरूपं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
महायोगसाद्ध्यं परिभ्राजमानं चिरं विश्वरूपं सुरेशं महेशम्।
अहो शान्तरूपं सदाध्यानगम्यं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
अहो मत्स्यरूपं तथा कूर्मरूपं महाक्रोडरूपं तथा नारसिंहम्।
भजे कुब्जरूपं विभुं जामदग्न्यं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।
अहो बुद्धरूपं तथा कल्किरूपं प्रभुं शाश्वतं लोकरक्षामहन्तम्।
पृथक्काललब्धात्मलीलावतारं धरन्तं मुरारिं भजे वेङ्कटेशम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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हार्दिक आभार। -प्रमोद कुमार शर्मा

वेदाधरा से हमें नित्य एक नयी उर्जा मिलती है ,,हमारे तरफ से और हमारी परिवार की तरफ से कोटिश प्रणाम -Vinay singh

नियम से आपका चैनल देखता हूं पूजन मंत्र की जानकारी मिलती है मन प्रसन्न हो जाता है आपका आभार धन्यवाद। मुझे अपने साथ जोड़ने का -राजेन्द्र पाण्डेय

बहुत बढिया चेनल है आपका -Keshav Shaw

वेदधारा के कार्य से हमारी संस्कृति सुरक्षित है -मृणाल सेठ

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