श्रीभूमिनीलापरिसेव्यमानमनन्तकृष्णं वरदाख्यविष्णुम्।
अघौघविध्वंसकरं जनानामघंहरेशं प्रभजे सदाऽहम्।
तिष्ठन् स्वधिष्ण्ये परितो विपश्यन्नानन्दयन् स्वानभिराममूर्त्या।
योऽघंहरग्रामजनान् पुनीते ह्यनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
भक्तान् जनान् पालनदक्षमेकं विभुं श्रियाऽऽश्लिष्यतनुं महान्तम्।
सुपर्णपक्षोपरिरोचमानमनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
सूर्यस्य कान्त्या सदृशैर्विराजद्रत्नैः समालङ्कृतवेषभूषम्।
तमो विनाशाय मुहुर्मुहुस्त्वामनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
अनन्तसंसारसमुद्रतारनौकायितं श्रीपतिमाननाब्जम्।
अनन्तभक्तैः परिदृश्यमानमनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
नमन्ति देवाः सततं यमेव किरीटिनं गदिनं चक्रिणं तम्।
वैखानसैः सूरिभिरर्चयन्तमनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
तनोति देवः कृपया वरान् यश्चिरायुषं भूतिमनन्यसिद्धिम्।
तं देवदेवं वरदानदक्षमनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
कृष्णं नमस्कृत्य महामुनीन्द्राः स्वानन्दतुष्टा विगतान्यवाचः।
तं स्वानुभूत्यै भवपाद्मवन्द्यमनन्तकृष्णं वरदेशमीडे।
अनन्तकृष्णस्य कृपावलोकादघंहरग्रामजदीक्षितेन।
सुसूक्तिमालां रचितां मनोज्ञां गृह्णातु देवो वरदेशविष्णुः।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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