श्रीरामचन्द्रं सततं स्मरामि
राजीवनेत्रं सुरवृन्दसेव्यम्।
संसारबीजं भरताग्रजं श्री-
सीतामनोज्ञं शुभचापमञ्जुम्।
रामं विधीशेन्द्रचयैः समीड्यं
समीरसूनुप्रियभक्तिहृद्यम्।
कृपासुधासिन्धुमनन्तशक्तिं
नमामि नित्यं नवमेघरूपम्।
सदा शरण्यं नितरां प्रसन्न-
मरण्यभूक्षेत्रकृताऽधिवासम्।
मुनीन्द्रवृन्दैर्यतियोगिसद्भि-
रुपासनीयं प्रभजामि रामम्।
अनन्तसामर्थ्यमनन्तरूप-
मनन्तदेवैर्निगमैश्च मृग्यम्।
अनन्तदिव्याऽमृतपूर्णसिन्धुं
श्रीराघवेन्द्रं नितरां स्मरामि।
श्रीजानकीजीवनमूलबीजं
शत्रुघ्नसेवाऽतिशयप्रसन्नम्।
क्षपाटसङ्घाऽन्तकरं वरेण्यं
श्रीरामचन्द्रं हृदि भावयामि।
पुरीमयोध्यामवलोक्य सम्यक्
प्रफुल्लचित्तं सरयूप्रतीरे।
श्रीलक्ष्मणेनाऽञ्चितपादपद्मं
श्रीरामचन्द्रं मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रं रघुवंशनाथं
सच्चित्रकूटे विहरन्तमीशम्।
परात्परं दाशरथिं वरिष्ठं
सर्वेश्वरं नित्यमहं भजामि।
दशाननप्राणहरं प्रवीणं
कारुण्यलावण्यगुणैककोषम्।
वाल्मीकिरामायणगीयमानं
श्रीरामचन्द्रं हृदि चिन्तयामि।
सीतारामस्तवश्चारु सीतारामाऽनुरागदः।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितः।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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